अभी हाल ही में जी–20 शिखर सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ, जिसकी न सिर्फ मेजबानी अपितु अध्यक्षता भी अपने देश भारत ने की । यह गौरवशाली पल रहे सभी भारतवासियों के लिए । विशेष तौर से इसलिए भी कि भार – त विदेशी मीडिया में और कुछ गिने–चुने देशों ने इसे भारत के लिए बहुत बड़ा भार अर्थात कठिन कार्य, चुनौतियों से भरा बताया । लेकिन वो ‘त’ जोड़ कर सही अनुमान नहीं लगा सके । अब 21वीं सदी का भारत बदल नहीं रहा है बल्कि बदल चुका है । ‘त’ – तीव्रता, तत्परता, तनमयता से बाहें फैलाकर अतिथि देवो भव: के नाद के साथ तैयार था । और सम्मेलन में आए अनेक राष्ट्रों की अतिविशिष्ट विभूतियों ने न सिर्फ इसका अनुभव किया अपितु इसकी मीडिया में सराहना भी की ।
इसी बीच हिंदी दिवस 14 सितम्बर आया और प्रत्येक वर्ष की भाँति पूरे हर्षोंल्लास के साथ राष्ट्रीय, सामाजिक, संस्थानिक स्तर पर जय हिंदी जय हिंद का गुणगान करते हुए हिंदी भाषा आज के परिवेश में वैश्विक स्तर पर कहाँ तक अपनी पहुँच बना चुकी है, इस पर प्रकाश डालते हुए ऑनलाइन–ऑफलाइन अनगिनित कार्यक्रम आयोजित हुए ।
‘हिंदी’ भाषा को, आज विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा का सम्मान प्राप्त हो चुका है । घर में भी पहले की अपेक्षा अधिक सम्मान प्राप्त होने लगा है किन्तु अभी बहुत कार्य किया जाना शेष है । भाषा सभी अच्छी होती हैं किन्तु अपनी भाषा, अपनी माँ सबसे अच्छी ही लगती है । उसी के अनुरूप अपनी माँ को यथोचित–सर्वोत्तम सम्मान अपने घर में मिलना ही चाहिए ।
एक चर्चा यह भी जोर–शोर से चल पड़ी जिसकी टाइमिंग ने और भी अधिक मामला सुलगा दिया । बात चली अब हम इंडिया नहीं भारत कहेंगे – और जी–20 अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन की सारी प्रचार साम्रगी हो, उच्चारण हो सबमें इंडिया नहीं भारत को स्थान मिला या अपनाया गया । यदि बात भारत को अपनाने–हिंदी भाषा को सम्मान देने की है तो स्वागत किया जाना चाहिए । लेकिन विपक्षियों को यह कदम मात्र् ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद एक हताशा के रूप में देखा जा रहा है । यहां पर कुछ बिंदु अवश्य हैं जो विचारणीय हैं µ
पहले सोचें–मंथन करें फिर क्रियान्वित करें । ऐसा न हो कि पहले की भाँति जैसे रात्रि बजे एकाएक प्रधानमंत्री जी की आवाज टेलीविजन पर सुनाई देती है कि 500 रु– के नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहेंगे । और फिर जो पूरे देश में क्या खलबली मची, नए नोटों का मुद्रण हुआ लेकिन हमें इस कठोर निर्णय/कदम से हासिल क्या हुआ ये कोई नहीं बता पाया । कहीं इसी प्रकार जब बात इंडिया से भारत करने की आती है तो इसमें कितना बड़ा आमूल–चूल परिवर्तन होगा या आवश्यकता होगी इस पर सिर्फ विचार किया जाना चाहिए अपितु उसके अनुरूप सारी व्यवस्था की जानी चाहिए, या की जाएगी । इसी क्रम में एक राष्ट्र एक चुनाव की भी चर्चा जोरशोर से है जिसपर सरकार मन बना चुकी है । क्यों न राष्ट्र एक तो सबका /धर्म भी एक — मानवता /धर्म और परिवार स्तर पर हम ईश्वर के किसी भी रूप को अपनाएँ यह हमारी अपनी श्रद्धा और विश्वास है ।