#karpuri thakur #bharatratna
विधा:-दोहे
भारत के राज्य बिहार, था पितौंझिया ग्राम।
जिला रहा समस्तीपुर, राजनीति सरनाम॥
जन्म स्थली प्रसिद्ध हुई, अब कर्पूरी ग्राम।
त्याग गवाही दे रहा, कर्पूरी का नाम॥
कर्पूरी ठाकुर जन्म, लेते हिन्दू धर्म।
पिता गोकुल घर पेशा, नाईगीरी कर्म॥
माँ रामदुलारि देवी, सन उनीस चौबीस।
जननायक अवतार लें, माह जनवरी बीस॥
बडा़ गरीबी से घिरा, अति पिछड़ा परिवार।
कुशाग्रबुद्धि शिक्षक बन, रखते उच्च विचार॥
शिक्षक अपने ग्राम थे, आजादी संघर्ष।
जाते जेल आंदोलन, देश के हित सहर्ष॥
उप मुख्यमंत्री एकइ, विपक्ष में कइ बार।
निबल हिती मुख्यमंत्री,राज किया दो बार॥
प्रथम बार विधायक सन, उन्नीस सौ वावन।
पहुॅंचे विधान सभा में, फिर जीत आजीवन॥
पृथक आरक्षण अगुआ, अति पिछड़ों उत्कर्ष।
सभी वर्ग हितैषी बन, आजीवन संघर्ष॥
कुर्ता फटा याकि कोट, जीवन सादा वेश।
नेता जनता बीच या, जाना रहा विदेश॥
नहीं चाह अपने लिए, घर जमीन संपत्ति।
जीवन शोषित समर्पित,नहीं मान आपत्ति॥
सन उनीस सौ अठासी, सत्रह फरवरि आत।
कर्पूरी ठाकुर हुआ,था निधन अकस्मात।
जन्म जयंती स्मरण है, सौवीं साल पुनीत।
भारत रत्न अवॉर्ड से, शोषित सुखी प्रतीत॥
जीवन भर ना कर सके, निज समाज उपकार।
मरणोपरांत दे दिया, संबल गौरव हार॥
मौलिक रचनाकार- उमाकांत भरद्वाज (सविता) “लक्ष्य” भिण्ड (म.प्र.)