श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, महाकाल मंदिर, अङ्गदानंद आश्रम इत्यादि जगहों पर तेजी से पनप चुके वीआईपी कल्चर ने ना सिर्फ आस्था को चोट पहुँचाना शुरू कर दिया है अपितु लोगो को सनातन और पूजा पाठ से भी दूर करने का काम किया है। मै अभी पिछले सप्ताह काशी विश्वनाथ धाम और महाकाल धाम गया पर वहां का एक दृश्य की वीआईपी शिवलिंग के पास जाकर सपरिवार रिस्तेदार के साथ पूजा पाठ और स्पर्श दर्शन कर सकते है किन्तु आम भक्त जिसे भगवान भी अधिक स्नेह करते है वह बहुत दूर से दर्शन कर रहा है ना जलभिषेक कर सकता है उल्टा उसे धकेला जा रहा यह देखकर मेरी ऐसे मंदिर जाने की आस्था लगभग समाप्त हो चुकी है। उधर विंध्याचल और ओम्कारेश्वर जैसे तीर्थ पर मंदिर प्रशासन और दर्शनार्थियों के बीच झगड़ा हुआ,यात्रियों का कहना है भारी भीड़ होने के बाद भी पुरोहितों ने वी.आई.पी को बिना लाइन के दर्शन करवाये। इसमें घंटो लाइन में लगे रहे भक्तगणों के मन में क्या भाव होंगे खुद सोचिये! देश में वीआईपी कल्चर खतरनाक स्तर पर पहुंच चूका है। वाराणसी में राष्ट्रपति का काफिला आया, उधर सुबह बेटे को छोड़ने स्कूल जा रहीं एक महिला को घंटो जाम झेलना पड़ा, मैदागिन चौराहे से किसी वी.आई.पी.का काफिला बिना किसी सायरन के पास हो रहा था। वह समझ नहीं पाई और स्कूल पहुँचने की जल्दी में काफिले के बीच से सडक क्रॉस करने लगी लेकिन तभी सेक्युरिटी वाली गाडी मेरी गाडी के बगल में आकर कुछ सेकेण्ड रुकी और एम्बेसडर की खिड़की से मुंह निकालकर दो – तीन जवान एक साथ बोल पड़े – ” ये क्या कर रही हो मैडम वह कुछ पल के लिए हक्की – बक्की रह गई कि उसने कौन सा रूल तोड़ दिया जो ये सवाल करते हुए निकले ? फिर गाड़ियों के लम्बे काफिले ने सारा माजरा समझा दिया। पूरी घटना पर बेटे ने त्वरित टिपण्णी दी –
” तो यह है वी.आई.पी.कल्चर का ख़त्म होना ? क्या इन्हें रुकना नहीं चाहिए कभी ? वह भी स्कूल के टाइम में जबकि सभी बच्चों को टाइम से स्कूल पहुंचना जरुरी होता तब ऐसा सलूक देश को कितना आगे ले जाएगा ? सच है , लाल बत्ती और सायरन आप छीन लें तभी देश में एकरूपता आएगी।
सभी मंदिरों में भक्त औऱ भगवान के बीच दूरियां बनाने वाले ये वीआईपी दर्शन की व्यवस्था बंद होनी चाहिए। देश मे वीआईपी कल्चर ने कब और कैसे जन्म लिया, इसका मुझे कोई ज्ञान नहीं है, लेकिन यह सत्य है कि इस कल्चर ने भारत के आम जन-मानस तक मे जड़ जमा लिया है। बतौर सोशल मिडिया,2021 में महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी के काफिले के लिए रोके गए ट्रैफिक में फंसी एम्बुलेंस में जान गवाने वाली कानपुर की महिला उद्यमी वंदना मिश्रा की मौत का जिम्मेदार कौन? एंबुलेंस मे वंदना तड़प रही थी। परिजन पुलिस से गिड़गिड़ा रहे थे। ट्रैफिक नही खुला और वीआईपी कल्चर की वजह से महिला की असमय मृत्यु हो गयी। ये ऐसी घटना है जो आपके हृदय को द्रवित कर देगी। पूरे देश मे आये दिन वी.आई.पी. मूवमेंट के कारण लोगों की जाने जाती है। सरकार को तत्काल वी.आई.पी. कल्चर और मूवमेंट को बंद कर देना चाहिए। वीआईपी का फुल फॉर्म तो वेरी इम्पोर्टेन्ट पर्सन होता है, लेकिन इस अर्थ से अधिकांश आम भारतीय इत्तेफाक नही रखते। कुछ लोगों में वीआईपी दिखने का कीड़ा भी होता है। मैंने इनका वर्गीकरण करने का प्रयास किया है। इस वर्ग में कुछ लोग ऐसे हैं जो बाई डिफॉल्ट वीआईपी हैं, जैसे देश के राष्ट्रपति और देश और प्रदेशों के मंत्री, विपक्ष के नेता आदि। चूँकि सत्ता इन लोगों के हाथ मे होती है तो इनका वीआईपी होना स्वाभाविक है। लेकिन इनमें भी सुरक्षा के आधार पर कई कैटगरी हो जाती है। जिसको जितनी बड़ी सुरक्षा वह उतना बड़ा वीआईपी। मजे की बात यह है कि कोई आवश्यक नहीं है कि उन्हें सुरक्षा के हिसाब से खतरा भी हो। जिसकी सुरक्षा में थोड़ी सी कटौती होती है उसके बारे में आम धारणा यही बनती है कि उससे प्रधानमंत्री या संबंधित मुख्यमंत्री जरूर नाराज है। सांसद भी वीआईपी होते हैं। अगर सत्ता पक्ष के हैं तो जरा बड़े वीआईपी और यदि विपक्ष के हैं तो जरा छोटे वीआईपी। जिन्हें मंत्रालय नही मिल पाता, वे लोग तमाम संस्थाओं, निगमों आदि में घुस कर अपना वीआईपी पना सिद्ध करने की जुगत में रहते हैं। विधायक, पार्षद आदि भी छोटे स्तर पर ही सही, इसी श्रेणी में आते हैं। ग्रामीण वर्ग के वीआईपियों का भी असली रूप गाँव के किसी फंक्शन में ही दिखता है। ये वीआईपी अपने लिये मेजबान की सामूहिक व्यवस्था से परे व्यवस्था की आशा रखते हैं और दसो गनर के साथ पहुँचते है । मसलन, अगर सब लोग जमीन पर बिठा कर खिलाये जा रहे हैं तो इनकी कोशिश होगी कि इन्हें कुर्सी-टेबल मिल जाय। अगर आपके यहाँ बुफे सिस्टम है तो ये पक्का आपके बरामदे में बैठ कर खाने की डिमांड करेंगे। अगर आप सबकी व्यवस्था बरामदे में किये रहते हैं तो ये चाहते हैं कि इन्हें घर के अंदर खिलाया जाय। इन्हें डालडा में तली पूड़ी से कभी-कभी परहेज होता है तो चिवड़ा-दही की डिमांड करते हैं, लेकिन उसी डालडे में बनी जलेबी और गुलाब जामुन से कोई परहेज नहीं होता। आशा है हम सब लोग इनमे से किसी न किसी कैटगरी के वी आई पी होने का आनंद उठा चुके होंगे। इनमे मुख्यतः प्रशासनिक सेवा के लोग हैं। कुछेक इंजीनियर, डॉक्टर और शिक्षाविद भी इस श्रेणी में आते हैं। ये वो लोग हैं जो मुख्यतः देश के बौद्धिक क्रीमीलेयर कहे जा सकते हैं। हालाँकि ये अंदरखाने राजनैतिक वी आई पियों को उनकी मूढ़ता और अल्प ज्ञान के लिये गरियाते रहते हैं, लेकिन इनके वी आई पी पना का ग्राफ बिना राजनैतिक वी आई पियों की कृपा से बढ़ ही नहीं सकता। सो इनको अपने अंदर चापलूसी का गुण भी पैदा करना पड़ता है। जिसने ऐसा नही किया वह ट्रांसफर-पोस्टिंग, तमाम नोटिसों और विभिन्न प्रकार के जाँचो से परेशान रहता है। जो कर लेता है वो विभिन्न मंत्रालयों में सचिव, किसी संस्था का डॉयरेक्टर, चेयरमैन आदि बन जाता है। अगर पुलिस विभाग में है तो उसे कमिश्नर, आई जी, डी जी पी आदि रैंक प्राप्त करने में सहूलियत प्राप्त हो जाती है। अगर वह चापलूसी की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तो उसे सेवानिवृत्ति के बाद राजनैतिक वी आई पी होने का भी गौरव प्राप्त हो जाता है। कुछ ने तो वी आर एस लेकर भी राजनैतिक वीआईपी पना हासिल किया है। हालाँकि यह कभी नही पता चलता है कि वह नौकरशाह अच्छा था या इंसान क्यूंकि मेरी नजर में वीआईपी अधिकतर भ्रस्ट होते है ।
– पंकज कुमार मिश्रा, मिडिया विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी