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देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने की कमजोर मुहिम से कैंसर का खतरा चरम पर ..!

आज विश्व में कैंसर एक लाइलाज बीमारी के रूप जानी जाती है , उसके लाइलाज होने के पीछे हम आप और बढ़ता प्लास्टिक उपयोग है । सिंगल यूज प्लास्टिक सबकी जरूरत बन चुकी है और एक सर्वे के मुताबिक विश्व का 40% कैंसर प्लास्टिक के उत्पादों, प्लास्टिक के अवयवों या प्लास्टिक के कारण विकसित होता…

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   कुछ इस तरह मनाएँ छब्‍बीस जनवरी इस बार,

सुधाकर अमृतवर्षा, दिवाकर रश्मि‍मणि बिखेरे इस बार,स्‍वाति गिरे धरा कुमकुम का शृंगार करे इस बार,क्षितिज पर फहराए विजयी विश्‍व तिरंगा अपना इस बार, कुछ इस तरह मनाएँ छब्‍बीस जनवरी इस बार,दो देश करते हैं जैसे विकास के लिए कोई करार।ग़रीबों के हक़ की बात करें इन्‍सानियत के दुश्‍मनों का करें बहिष्‍कार,बच्‍चों की सेहत पर दें ध्‍याननारी…

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तुम कल नहीं रहे तो क्या होगा???

डा.सर्वेश कुमार मिश्र (महासचिव वैश्विक संस्कृत मंच दिल्ली प्रांत) _ खुद को महान समझते हो, बल और बुद्धि की खान समझते हो, पर सोचा है गर तुम कल नहीं रहे तो क्या होगा?? सोचा है कल का सूरज गर न सके देख तो क्या होगा?? सुनो शुक्कर की बाजार भी लगेगी शनि बाजार भी लगेगी…

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स्वार्थ निहित राष्ट्रवादियों से सावधान ..!

राष्ट्रवाद के निमित्त देश हित में सामाजिक  रंग और भावना कैसा है,कोई इसे हनुमान की तरह सीना फाड़कर नहीं दिखा सकता। राष्ट्रवादी होने का कोई गीत नहीं गाया जा सकता। राष्ट्रवाद अपने आप में एक जज्बा है, जूनून है जिसे मौक़ा मिलने पर पूरी ताक़त से दिखाया जाना चाहिए ना की पहले भारत तेरे टुकड़े…

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गायों की हो रही है दुर्दशा

भारतीय संस्कृति में जिस गाय को ‘मां’ की संज्ञा दी गई है, उसका ऐसा हश्र लम्पी बीमारी से पहले कभी नहीं हुआ। गायों की दुर्दशा को लेकर अब सिर्फ जिनके घर गाय है वो ही चिंतित हैं।  क्या गाय बचाने की जिम्मेवारी सिर्फ पशुपालन विभाग की ही बनती है, बाकी समाज केवल तमाशा देखे। आज…

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सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के आगे दहाड़ता  सिंह …!

नए संसद भवन से जिस अशोक स्तम्भ का प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया उसका आकार और प्रस्तुति मूल अशोक स्तम्भ से जुदा दिखाई देने का दावा किया जा रहा है । मन में प्रश्न उठा आख़िर अशोक स्तम्भ के मूल स्वरूप में परिवर्तन क्यों  किया गया ?आख़िर क्या उद्देश है इस तरह राष्ट्रीय चिन्ह के…

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आनंद से भरा प्याला पीने को मिलता है

खोजना है तो सिर्फ आनंद की खोज कर, संसार में स्वयं को आडंबर से अलग रख। झूठी प्रतिष्ठा  के पीछे  नहीं  भाग अधिक, बहुत कुछ करना है पास में है थोड़ा वक्त। लोग उलझायेंगे  किन्तु रहना है सावधान, धैर्यऔर विवेक से मंजिल तक पहुंचना है। आदमी के लिए कोई  काम असंभव नहीं, दृढ़-संकल्प  के  साथ…

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गोपीनाथ बोरदोलोई

(10 जून, 1890 से 05 अगस्त, 1950) प्रारंभिक जीवन :- लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलाई का जन्म 10 जून, 1890 को असम के नौगाँव ज़िले के रोहा नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम श्री बुद्धेश्वर बोरदोलोई तथा माता का नाम श्रीमती प्रानेश्वरी बोरदोलोई था। जब गोपीनाथ मात्र 12 साल के ही थे तभी इनकी…

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बुकर पुरस्कार हिंदी का वैश्विक सम्मान

      सर्वप्रथम तो मैं गर्व के साथ लेखिका गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार प्राप्त होने की बधाई देती हूं, नमन करती हूं।           यह उपन्यास  “रेत समाधि “2018 में हिंदी में प्रकाशित हुआ था तब इसकी अधिक चर्चा नहीं थी किंतु 375 पेज का उपन्यास अंग्रेजी में अमेरिका में रहने वाली लेखिका अनुवादक डेजी राकवेल…

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बैसाख़ पर गुलज़ार हो हर हृदय में प्रेम की शाख़

कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार, संरक्षक) प्रेम के पल्लवों से गुलज़ार हो जाए हर शाख़ नवचेतना हर रूह में उतरे तो घटित हो बैसाख़ वक्त की रफ़्तार और प्रकृति के प्रहार धीमे धीमे अपने विभिन्न रंगों से समूचे विश्व को रंग रहे हैं।वैश्विक स्वास्थ्य केवल दैहिक उपकरणों की देख-भाल का परिमाण नहीं है, बल्कि वैश्विक मानसिकता…

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