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उथल-पुथल से भरपूर रहा पखवाड़ा

राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

यह पखवाड़ा बहुतउथल-पुथल वाला रहा । चुनाव भी निपटे और बहुत सारे बड़े कहे जाने वाले नेता भी निपट गए । वे चुनाव जीतकर निपट गए और बुछ चुनाव हार कर निपट गए । पर सबसे पहले तो भारत के लोकतंत्र के मंदिर में अनायास घुसने वाले तथाकथितों की कहानी । ससंद भवन में परिंदा भी पर नहीं मार सकता बगैर सुरक्षाकर्मयों की सहमति के । ऐसा हम सभी मानते रहे हैं । वर्ष 2001 में भी आतंकवादियों ने जो ससंद पर हमला किया था वो भी अंदर नहीं घुस सके थे केवल बाहर से ही गोलियां बरसाते रहे और हमारे ही मुश्तैद जवानों की गोलियों का शिकार हुए पर इस बार दो व्यक्ति ससंद के अंदर घुस गण् वहां कूद गए जहां हमारे सांसद बैठते हैं । आश्चर्य का विषय तो है ही । यह कैसे संभव है । ससंद में तो सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी होती है हमेशा और उस समय तो और ज्यादा कड़ी होती है जब ससंद चल रही हो । फिर कैसे दो व्यक्ति ऐसा कर पाए । अतिथि गैलरी से वे कूदे और उन सीटों पर पहुंच गए जहां सांसद बैठते हैं । सांसदों ने भी आर्श्चय के साथ सारा नजारा देखा और फिर उन्होने उसे पकड़ने में मदद भी की । उन्होने अपने जूतों के तलुओं में रंीन धुआ फैलाने वाला युंत्र रखा था उससे उन्होने धुआ फैलाया भी । ससंद का कक्ष पीले धुयें से भर गया । जिन्हाने ससंद भवन में घुसने की इतनी हिम्मत दिखाई उनको तो पकड़ा ही जाना था सांे वे पकड़ लिए गए और अब सूक्ष्म विवेचना जारी भी है । पर प्रश्न अब यह सामने आ चुका है कि ऐसा हुआ कैसे ? किसी सांसद महोदय की सिफारिस पर उन्हें ससंद के अंदर अतिथि गैलरी ें बैठने का पास मिला था । ऐसा आमतौर पर होता ही है । सांसद अपने ढंग से बगैर कोई जांच  पड़ताल किए ससंद की कार्यवाही देखने के लिए सिफारिस कर देते हैं । उनके सिफारसी पत्र के आधार पर ससंद का सचिवालय पूरी जाच करके उन्हें गैलरी तक पहुंचा देते हैं । पर ऐसा तो पहली बार ही हुआ है किसी ने ऐसे पास का इस तरह से दुरूप्योग किया हो । घटना तो बड़ी है, वे किस मकसद से ससंद के अंदर घुसे इसकी विवेचना तो होगी ही पर उससे ज्यादा चिन्तनीय है कि वे ससंद के अंदर प्रवेश कर गए । कोई दो ससंद के बाहर हंगामा करते रहे । उनकी पूरी योजना सामने आती जा रही है पर यक्ष प्रश्न यह ही है कि ऐसा हो कैसे गया ? इस पर चिन्तन किया जाना ज्यादा महत्वपूर्ण है और हो भी रहा होगा । इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है । देष को तो भाजपा के उन निर्णयों ने भी हिला कर रख दिया जिसमे उन्होने अपने द्वारा बहुमत से जीते प्रदेशों में ऐसे नेताओं को मुख्यमंत्री जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन कर दिया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर पा रहा था । कई प्रदेशों के चुनाव परिणाम भी अप्रत्याशित माने जा रहे हैं । भाजपा ने राजस्थान, छत्तीगढ़ और मध्यप्रदेश में बहुमत हासिल कर लिया । वो भी इतना अधिक कि कोई भी सर्वे इसके आसपास होना भी नहीं बता रहा था । जाहिर है कि प्रधान मंत्री श्री मोदीजी का जादू पूरे देश में छाया हुआ है क्योंकि प्रदेशों के चुनाव भी श्री मोदीजी के नाम पर ही लड़े गए । प्रदेश के किसी नेता को आगे नहीं किया गया । मध्यप्रदेश में तात्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पीछे ही दिखाई दिण् जबकि वे वे मुख्यमंत्री थे और ऐसा माना जाता है कि उन्होने चुनाव के कुछ महिने पूर्व ही जिस ढंग से लाड़ली बहिना योजना को क्रियान्वित किया उसका फायदा भाजपा को चुनाव परिणामों में मिला । खुद शिवराज सिंह पूरे प्रदेश में रैली-पर रैली करते रहे उन्होने करीब 165 सभाएं कीं । उन्होने भाजपा को जितने में बहुत मेहनत की पर भाजपा की जीत में प्रधान मंत्री श्री मोदीजी को ही श्रेय दिया गया । इसके चलते ही मुख्यमंत्री कौन हो इसकी जबावदारी उनके पास ही रही और उन्होने निर्णय लिया । भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व इस बात को बताना चाहता है कि उनके लिए आम और खास का कोई मायने नहीं है वे जिसे चाहेगें उसे उच्च पद पर आसीन कर देगें । वे बड़े-बड़े नामीगिरामी नेता जो राजनीति और राजनीतिक पदों को अपना बपौती समझते रहे हैं वे टकटकी लगाकर अपने नाम की प्रतीक्षा करते रहे और भाजपा हाईकमान ने उन्हें ठेंगा दिखाकर ऐसे नेताओं को इतनी बड़ी कुर्सी पर बैठा दिया जिसकी कल्पना उन्होने ने भी कभी नहीं की होगी । छत्तीगढ़ में विष्णु साय, मध्यप्रदेश में डॉ मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा ऐसे नाम हैं जिनके बारे में कयास भी नहीं लगाया जा सकता था । राजस्थान में वसुंधरा राजे के इर्दगिर्द पूरी प्रदेश की राजनीति घुूमती रही है । सत्ता में हो या विपक्ष में राजनीति का केन्द्र बिन्दु वे ही बनी रहीं और इसलिए भी अनुमान का पहला दौर उनके नाम तक ही सिमटा रहा । माना तो यह भी जाता रहा कि यदि वे मुख्यमंत्री नहीं बनीं तो बगावत कर सकती हैं पर भाजपा हाई कमान ने ऐसी सारी संभावानाओं के बीच भी भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया । छत्तीगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्रर रमन सिंह की संभावनाओं को नकारते हुए विष्णु साय को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया । मध्यप्रदेश में नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटैल तो केन्द्रीय मंत्री भी थे और जब उन्हें विधानसभा के लिए टिकिट दिया गया तो यह माना जा रहा था कि अब ये प्रदेश में अहम भूमिका में दिखाई देगें पर उनको किनारे कर दिया गया । नरेन्द्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा रहा है जो उनके विगत पद के समानांतर नहीं हैं याने उनका कद कम हो गया है । वैसे अब यह कयास तो लगाये ही जाने लगे हैं कि शेष बचे इन नेताओं का भविष्य क्या है ? गुजरात में भी ऐसे ही बड़े नेताओं को घर बैठा दिया गया है तो क्या इन राज्यों के ये बड़े नाम वाले नेता भी अपने आपको घर में बैठा हुआ समझ लें ? जिन नए नेताओं को सत्ता की कुर्सी पर बैठाया गया है वे प्रदेश का सम्हाल पायेगें ? हर राज्य की अपनी चुनौतियां हैं । मध्य्रपदेश में लाड़ली बहिना चुनौती है जिसके ऊपर प्रति माह करोड़ों का खर्च आ रहा है । ऐसी ही बुछ योजनायें राजस्थान में चल रही हैं वे भी बहुत खर्चीली हैं । अमूमन हर राज्य कर्जे में डूबा हुआ है, आय कम और खर्च अधिक । राजस्थान में तो गैसे सिलिंडर 500 रूप्ये में देने का वायदा किया गया था याने शेष राशि प्रदेश सरकार खर्च करेगी पर कहां से ? बहुत सारे प्रश्न उलझे हुए हैं । भजनलाल शर्मा तो पहलीबार विधायक बने हैं तो उनके पास कितना सरकार चलाने का अनुभव होगा ? बगैर अनुभव के इतना बड़ा प्रदेश कैसे चलेगा ? ये तमाम प्रश्न आम आदमी के पास हैं, हो सका है कि भाजपा हाईकमान ने इन सारे प्रश्नों पर चिन्तन किया होगा और उसका हल भी खोजा होगा । लोकसभा चुनाव की तैयरियां भी प्रारंभ हो चुकी हैं । याने नए नवेले मुख्यमंत्रियों को पहली परीक्षा से गुजरना होगा वो भी बगैर तैयारी के । यदि लोकसभा में प्रदेष सरकार अधिक लोकसभा सीटों पर चुनाव नहीं जीतती है तो फिर इसका ठीकरा इन मुख्यमंत्रियों के सिर पर ही फूट सकता है । बड़े नेता कितना मौन रहकर बगावती सुर अपनायेगें ? मध्य्रपदेश के पूर्व मुख्यमंत्रि का यह बकतव्य कि ‘‘कुछ मांगने से अच्छा है मर जाना’’ क्या जाहिर कर रहा है । कष्ट और दुख तो नको होगा ही उन्होने विधानसभा चुनाव जिताने में पूरी मेहनत की, वे प्रदेष््रा की बहिनों के भाई बने पर अब जब इस भाई को कुछ करना था तब वे पूर्व हो गए । हर एक बड़े नेता के चेहरे पर चुनाव जीतने और सत्तारूढ़ होने की प्रसन्नता गायब हो चुकी है । वे अपने वर्तमान से भविष्य के बारे में चिन्तन कर रहे हैं जो फिलहाल सुनहरा तो दिखाई नहीं दे रहा है । तेलंगाना मं कांग्रेस ने केसीआर की पार्टी को हराकर अपनी सत्ता बना ली है । यह िइकलौती खुशी उनके हिस्से में आई है जबकि वे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी सत्तारूढ़ होने की कल्पना कर रहे थे । मध्य्रपदेश में तो लगभग सारे न्यूज चैनल भी कांग्रेस की ही सरकार बनने की बात कर रहे थे पर ऐसा नहीं हुआ । कांग्रेस को कवल तेलंगाना ही मिला । अब कांग्रेस की तीन सरकारें हो गई है । यदि सारे राज्य कांग्रेस ने जीत लिए होते तो वे लोकसभा के अच्छे परिणामों के लिए उत्सुक होते वे भी और उनका गठबधंन इंडिया भी पर अब सभी के चेहरों पर निराशा के बादल मंडरा रहे हैं । आम मतदाता को भी लगने लगा है कि आगामी लोकसभा के चुनाव भी मोदीजी ही जीतेगें । परिणाम साफ हैं केवल उसके लिए सारे गतिविधियों को पूरा करना है । इस कारण से भी पिवक्षी खेमा का उत्साह खत्म होता दिखाई देने लगा है । सर्वौच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा धारा 370 हटाने के बहुप्रीतिक्षत निर्णय को सुना दिया और केन्द्रीय सरकार के निर्णय पर मुहर लगा दी । इससे केन््रद ने तो सुकून भरी सांस ली ही और गृहमंत्री अमित शाह को भी संसद में कांग्रेस के अतीत के निर्णयों पर उंगली उठाने का अवसर मिल गया ।

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