
कविता और कहानी

मर्यादा पुरुषोत्तम राम
श्रीराम ही मेरे शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। श्री राम की छवि बड़ी निराली कण -कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस सांस में है बसा नाम तुम्हारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम …

महिला सशक्तिकरण की दौड़ जीतती भारतीय रेलवे
(पुरुषों के गढ़ तोड़ने वाली “प्रथम महिलाओं” को पहचानने की आवश्यकता) कैबिनेट द्वारा स्वीकृत नियुक्तियों के नवीनतम दौर के साथ पहली बार रेलवे बोर्ड में महिलाएँ ड्राइवर की सीट पर हैं। कांच की छत को तोड़ते हुए, रेलवे बोर्ड का नेतृत्व पहले से ही एक महिला द्वारा किया जा रहा है, अब संचालन और व्यवसाय…

विश्व हिंदी दिवस को समर्पित पंक्तियां
डॉक्टर सुधीर सिंह जी (शेखपुरा, बिहार ) हिंद और हिंदी हिंदुस्तानी की पहचान है,वही हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की जान है।हिंदी की श्रेष्ठता को संसार स्वीकार कर,सरेआम कह रहा है हिन्दुस्तान महान है। भाषाअभिलाषा को कार्यान्वित करती है,उससे ही व्यक्तित्व का विकास होता है।हिंदी की भव्यता ही भारत का भविष्य है,इसलिए वह हमारी प्यारी राष्ट्रभाषा है।…

प्रिय सेवानिवृत्त या वरिष्ठजन :
हम लोग वरिष्ठ नागरिक स्वरूप 55 से 60 के उस पार एक शानदार उम्र के दौर में हैं । शायद हम लोग उम्र के इस मोड़ पर भी बहुत खूबसूरत दिखते हैं, ऐसा मेरा विश्वास है । हमारे पास लगभग वह सब कुछ है जो हम बचपन में चाहते थे । हम स्कूल…


नववर्ष 2025
नववर्ष आ गया……. नववर्ष आ गया , नवफूल मुस्कुराए । कलियाँ खिली दिलों मे, खुशियों के चमन में। इरादे बदल गये हैं, ख्वाहिश नई जगी है । रेतों के परिन्दे , हरियाली में मुस्कुराए। मंजिलों के नए सपने , जन्म ले रहे हैं । इरादे बुलंद देखो, मन में खिल रहे हैं । छोटे से…

आदरणीय पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह को समर्पित
डॉक्टर सुधीर सिंह जी (पूर्व प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष – रामाधीन विश्वविद्यालय ) शेखपुरा, बिहार महान ‘मनमोहन’ की अंतिम विदाई से,एक-एक हिन्दुस्तानी आज गमगीन है।इसी को हम कहते हैंआत्मा की पुकार,जिसे अनसुनी कर देना नामुमकिन है। सम्मान के रूप में परमात्मा की प्रेरणा,सबों की सोच में समाहित हो जाती है।जिनकी सुकीर्ति का ऋण है राष्ट्र पर,अश्रुजल…

गिरगिट ज्यों, बदल रहा है आदमी
गहन लगे सूरज की भांति ढल रहा है आदमी। अपनी ही चादर को ख़ुद छल रहा है आदमी॥ आदमी ने आदमी से, तोड़ लिया है नाता। भूल गया प्रेम की खेती, स्वार्थ की फ़सल उगाता॥ मौका पाते गिरगिट ज्यों, बदल रहा है आदमी। अपनी ही चादर को ख़ुद छल रहा है आदमी॥ आलस के रंग…

आईना सच्चाई का
महिलाओं की किट्टी पार्टी एक रेस्टोरेंट में चल रही थी। सभी महिलाएं घर से अच्छी तरह से तैयार होकर पार्टी करने के मूड से बैठी हुई थी। ठहाके लग रहे थे। सभी आपस में मित्र थी। मासिक पैसे देने का काम चल रहा था। एक महिला जो अपने को ज्यादा स्मार्ट बनती है सभी के…

ठंड के रंग बेढंग
लो फिर शीत ऋतु आ गई लो फिर शीत ऋतु आ गई। छाया सा है कोहरा कोहरा अंधियारा सा पसरा पसरा धुंधली सी धुंध छा गई। लो फिर शीत ऋतु आ गई । शाखों पर पंछी सहमें सहमे कोतूहल से बहमें बहमें क्यों दिन में रात आ गई। लो फिर सी ऋतु आ गई है।…