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हरा भरा खेत

बारिश हुई झम झमाझम , मेढ़क टर्र टर्र टर्रा रहे हैं । झींगुर बजा रहे शहनाई , केंचुए मिट्टी ये खा रहे हैं ।। पहले जो पड़े हुए थे श्वेत , आज हुए हरे भरे ये खेत । कह रहा है हर्षित बादल , चल किसान अब तो चेत ।। पड़े जो अब तक विरान…

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जुगनू इन रातों के : अनिल भारद्वाज एडवोकेट

शीतल नहीं चांदनी रातें, उमस भरा सारा दिन, जाने कहां छिपी वर्षा ऋतु,कहां खो गया सावन। फूलों के मौसम में जिसने ढेरों स्वप्न संजोए, बिना आंसुओं के वो क्यारी चुपके चुपके रोए। सूख रहे हैं पुष्प लताऐं, प्यासी है अमराई, किसी पेड़ की छाया में,जाकर लेटी पुरवाई, जाने कहां जा बसे वे दिन,रिमझिम बरसातों के,…

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गीतों के होठों पर

फिर वही यादों की बारिश,वही गम का मौसम। जाने कब झूम के आएगा प्यार का मौसम। ख्वाबों के ताजमहल, रोज बना करते हैं, वादों के शीश महल, चूर हुआ करते हैं। फिर वही टूटी उम्मीदों के खंडहर सा मौसम, जाने कब झूम के आएगा प्यार का मौसम। चांदनी आती नहीं, चांद भी नहीं आता, तारों…

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लघुकथा – मैसेज (डॉ. कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’)

बच्चे का दाखिला अच्छे कॉलेज में हो गया था। हाँ, उसकी मेहनत रंग लाई थी। उम्मीदों अरमानों के साथ हॉस्टल में व्यवस्था करा, माता-पिता।अश्रुपूरित आँखों से संबंधों-रिश्तों की मिठास भरे घर लौट आए। रीमा! कितना खाली-खाली लग रहा है। बच्चों की शरारत,उछल-कूद बड़ी याद आ रही। सच कहते हो, यहाँ उसके रहने से कुछ तो…

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प्यारी सी बिटिया

मै गीत गुन -गुनाऊ सुन प्यारी सी बिटियाँ चिड़ियों सी चहकती रहे हर आँगन की बिटियाँ हर वक्त तू खुश रहे मेरी प्यारी सी बिटियाँ। मै तुझे आवाज लगाऊ तुम दोड़ी आओं बिटियाँ बाबुल का कहा मानती हर आँगन की बिटियाँ हर वक्त तू खुश रहे मेरी प्यारी सी बिटियाँ। मै सपने देखता जाऊं मेहंदी…

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मां : राकेश कुमार (बिहार)

माँ अपनी छाया जरूर देना,  कुछ देना या ना देना माँ तू प्यार देना,  चंचल हु नादान हु गले से अपना लगा देना,  माँ मुझे किसी की नज़र ना लगने देना,  लाल हू तेरा माँ विजयी सितारा लगा देना।  प्यार भरा आशीर्वाद रहे हीरा जैसा चमका देना।  आँखों की रोशनी तू मुझे अपना बना देना।…

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फर्क

बाबूजी तो भेदभाव बहुत ही करते हैं। बेटियों के लिए मरे ही जाते हैं। यहाँ सेवा हम करें, बुराई भलाई-फोड़ते हैं बेटियों से। श्यामा प्रसाद जी की बहू का रोज ही शगल था। वह जरा ही अपनी बेटी से फोन पर बात करने क्या लगते हैं बहु को पतंगे लग जाते। पत्नी के गुजर जाने…

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संतोष (लघुकथा)

    शाम होते-होते सूरज ढलने लगा। उम्मीदों के दीप बूझने लगे मगर सबको अपना-सा लगने वाला रमेश फिर कभी उन लोगों के बीच कभी नहीं लौटा जिनके लिए आधी रात को भी मुसीबत आए तो तैयार हो जाता था। गॉंव छोड़ शहर की नौकरी में ऐसा उलझा की घर बसाना ही भुल गया। गॉंव भी…

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युवाओं को अपनी संस्कृति, कला और विरासत से जोड़कर बनायें एक श्रेष्ठ नागरिक –  पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

युवा आने वाले कल के भविष्य हैं। इनमें आरम्भ से ही अपनी संस्कृति, कला, विरासत, नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रह पैदा कर एक श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के इस अनियंत्रित दौर में उनमें अध्ययन, मनन, रचनात्मक लेखन और कलात्मक प्रवृत्तियों की आदत  न सिर्फ उन्हें नकारात्मकता से दूर रखेगी अपितु उनके…

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रेशमा  :  डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”

रेशमा एक बहुत ही सीधी-सादी लड़की थी । जहां उसके साथ की लड़कियां फ़ैशन ,टीवी और मोबाइल में लगी रहती थी वहीं वह उम्र से पहले ही बड़ी हो चुकी थी। रेशमा का पिता शराबी था वह दर्जी का काम किया करता था परन्तु सारी की सारी कमाई अय्याशी और शराब पर लुटा दिया करता…

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