Latest Updates

ठंड के रंग बेढंग

लो फिर शीत ऋतु आ गई  लो फिर शीत ऋतु आ गई।  छाया सा है कोहरा कोहरा  अंधियारा सा पसरा पसरा  धुंधली सी धुंध छा गई।  लो फिर शीत ऋतु आ गई । शाखों पर पंछी सहमें सहमे  कोतूहल से बहमें बहमें  क्यों दिन में रात आ गई।  लो फिर सी ऋतु आ गई है।…

Read More

ताटक छ्न्द : राम

राम नाम सबसे ही प्यारा, कहते सारे ज्ञानी हैं। जो भूला मूरख कहलाया, वही बड़ा अज्ञानी है। राम नाम की डोरी पकड़ो, मिलता सहज सहारा है। हाथ पकड़ कर जो भी रखते,भव से पार उतारा है। माया की नगरी यह दुनिया, लालच ने भरमाया है। चार दिनों का जीवन पाया, नहीं समझ क्यों पाया है।…

Read More

ब्यूटी पार्लर का कमाल (व्यंग्य)

मुझे कविताएं लिखने का बड़ा शौक था। कविताएं लिखने से ज्यादा सुनाने का शौक था। कविताएं सुनाने से ज्यादा कवि सम्मेलन में जाने का शौक था। कवि सम्मेलन में जाने से ज्यादा तालियां बजवाने का शौक था। और सबसे बड़ी बात भले ही हम साठ बसंत देख चुके थे पर तीस का दिखने का शौक…

Read More

एक झूठ

               एक प्रसिद्ध पत्रिका में लिखी हुई समस्या उसे अपने एक परिचित की समस्या सी लगी। थोड़ा सा और पता करने पर उसे महसूस हुआ कि यह कहानी तो शायद उसी परिचित व्यक्ति की ही है । उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर अपने मायके में रह रहीं थीं । वे उनके ही पड़ोस में रहने वाले…

Read More

दरकते रिश्ते

           आगरा में बड़ी-सा मकान, पति ठेकेदार तथा बेटा प्राइवेट कम्पनी में लगा हुआ था। मकान वैसे तो सविता के पिताजी का था पर अब वही उसकी मालकिन थी। उसके पिता जी ने अपनी दोनों बेटियों में अपने जायदाद का बंटवारा इस तरह किया था की आगे चलकर दोनों के मध्य कोई भी मतभेद न…

Read More

कहानी : जिहाद से आजादी

डोली शाह       रंग- बिरंगे फूलों की क्यारियां , बच्चों को झूलने के झूले,  स्विमिंग पूल, मनोरंजन की सारी सुविधाएं ,वहीं लोगों में मधुरता के रस ,कूछ ऐसा था— अकबर पार्क रोड। यहां अक्सर घूमने वाली का  तांता  लगा रहता था।         कुछ अंदर जाकर ही अकबर  कॉलोनी जहां, क्या सनातनी ,क्या टोपी वाले —…

Read More

दीपगीत

शुचि शारदी  शान्त  अमा में दीप जलता  है अकेला।             अनुराग- प्रकाश  फैला है  दिशा  में             छितरा  रही  नभ   में    गंगा- कली             कमलासिनी- कमले!  कल केशनी!             तारकों  से   होड़   लेने   है     चली एक दीया रख दो ड्योढ़ी, दूसरा कुएँ पर, हो उजेला।              साधना   का       दीप     है   यह              श्वास    में     उन्माद    …

Read More

इंसानी रिश्ते

बड़ी मालकिन घर के  नौकर चाकरों  से बड़ा कठोर व्यवहार करती। उनको तुच्छ और हीन समझती। उनकी नजर में पैसा होना ही सबसे ज्यादा जरूरी था। पूजा पाठ के नाम पर दिखावा भी बहुत करती अम्मा। घर के नौकर बुरा नहीं मानते थे उनकी बातों का। कभी-कभी तो छूत-अछूत भी कर दिया करती थी। बरसात…

Read More

नवरात्रि

नवरात्रि वर्ष में दो बार आती हैं।बसंतिक नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। हमारा हिंदू कैलेंडर व नव वर्ष की शुरुआत नवरात्रि से होती है। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नवरात्रि प्रारंभ होती हैं जो हिंदू नव वर्ष का पहला दिन भी होता है। इस दिन सनातन धर्म के लोग नव वर्ष बड़े ही उत्साह…

Read More

विकार

समाज सहता प्रहार इतने  बहुत जगह वे गड़े मिलेंगे ।  कहीं खुले तो छिपे कहीं पर  दुखी हृदय भी पड़े मिलेंगे ।।  सदा रहा आन बान जग में  सभी तरफ घोष थी जय जय।  पड़ा उसी पर कभी अँधेरा  किताब में वह जड़े मिलेंगे।।  कभी अँधेरा कभी उजाला  चले सतत यह समय निरन्तर।  समय सदा…

Read More