नारी (कविता-2)
माना एक नारी की जिंदगी उसकी कब होती है पर उसे भी अधिकार है अपने मन से जिंदगी जीने का खिलखिलाने का गुनगुनाने का, पर ये अधिकार उसे स्वयं लेना होगा देना सीखा है लेना भी सीखना होगा कर्तव्य के साथ सचेत होकर आगे बढ़ कर अपना अधिकार लेना होगा, इससे नहीं बदलेगा उसका बेटी/…