पिता (कविता-2)
दीया में तेलशक्ति भले क्षीण हो पिता सूर्य की तरह जला है; राहें अंधियारी उबड़ खाबड़ अपनों के खातिर सदा चला है! अपनों के खातिर सदा चला है!! 🌹 तूफान के साये काले कंदर्प टूटा न उसका लोहित दर्प लहूलुहान हुआ अपनों के लिए दिल में रख बस एक तड़प! दिल में रख…