माँ!.. ..(कविता-5)
याद मुझे है माँ देखो ! अब भी कुछ-कुछ बचपन की वह यादें .. जब तुम रखती थी अंजुरी में भरकर अपने सरसों का वह तेल मेरे सूखे माथे पर और ठोकती रहती थी दोनों कोमल हाथों से तब-तक, जब-तक वह भिन न जाता था सिर के बालों में कहती थी सर की पीरा छू…