खुशामद-परस्त लोगों सेआमआदमी परेशान है,
बिना तेल-मालिश किए होता नहीं कोई काम है.
आसन चाहे जमीन हो; या हो बहुत ऊँचाई पर,
खुशामद के बाद ही उनसे होती जान-पहचान है.
कुर्सी का नशा इंसान के लिए गजब का नशा है,
स्वजन-परिजन को भी चढ़ावा चढ़ाने कहता है.
कुर्सी की संतुष्टि के लिए चढ़ावा बहुत जरूरी है,
मजबूरी का शिकार इंसान पांव तक पखारता है.
पैरवी का ही बोलबाला है;प्रशासन के परिसर में,
बिना कुछ दिए काम एक डेग भी नहीं बढ़ता है.
सबों ने इसे झेला है ; सब इससे पूर्ण परिचित हैं,
कार्य-सिद्धि के लिए आगे-पीछे करना पड़ता है.
प्रशासनिक कार्यालय हो या राजनीति महकमा,
विकासित हिंदुस्तान हेतु ईमानदार नेतृत्व चाहिए.
लगता हैआज का हिंदुस्तान सचमुच जग गया है, सजग राष्ट्रीय नेतृत्व पर सबको गर्व होना चाहिए