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क्या होंगे सावधान एक दिन ?

श्रीराम कथा में मिले परम पूज्य संत मोरारी बापू के आशीर्वाद से भारत के यशस्वी राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से भेंट तक की यात्र में माता–पिता एवं गुरुजनों का आशीर्वाद एवं आप सभी की शुभकामनाओं को अनुभव करता हूँ । यूं ही स्नेह बनाये रखें ।
हम होंगे सावधान एक दिन ? क्या यह दिन आएगा यह विचारणीय है । दिल्ली–एनसीआर में प्रदूषण से मचे हाहाकार से सभी ग्रसित हैं । मुँह पर मास्क/रुमाल बांधे लोग नजर आ रहे हैं । ऑड–इवन का फार्मूला भी चमत्कार नहीं कर पा रहा है । हद तो तब हो गई जब संसदीय समिति की प्रदूषण के मामले को लेकर विशेष बैठक बुलाई गयी जिसमें 29 सदस्यों में से मात्र् 4 सदस्य पहुंचे । यह बहुत गंभीर बात उभर कर सामने आई है । प्रदेश की जनता की जान आफत में है और तंत्र् बेपरवाह/आरामदायक स्थिति में है, उनका अभी भी सोचना है—निपट लेंगे । यह देखकर ऐसा लगता है कि कहीं वह मुहावरा सच न हो जाए कि — ‘अब पछताये क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत’ ।
मित्रे! स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व और आज की स्थिति में हम लगातार अनुभव करते आ रहे हैं कि जीवन मूल्यों का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है । पहले हम और हमारे अपनों की बात होती थी, अब केवल मैं और मेरा की बात होती है । यदि राजनीति की बात करें तो उसमें अब ‘नीति’ ही बहुत कम या कहें नहीं दिखाई देती । सत्ता पाना ही एकमात्र् लक्ष्य रह गया है । सत्ता के लिए विरोधी, जिसको चुनाव प्रचार में खूब कोसा गया, भला–बुरा कहा गया, अचानक ठीक लगने लगता है । हरियाणा में हमने इसका साक्षात उदाहरण देखा है । महाराष्ट्र में तो ‘महा’ रास हो ही रहा है । पूरी तरह से विचारों में भिन्नता होने के बाद भी तीन पार्टियाँ शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के एक साथ आगे बढ़ने की संभावनाएं बनने लगी । यदि यह होता है तो क्या मतदाता अपने को ठगा महसूस नहीं करेंगे । दूसरी ओर अपनी सीटें कम होने के बावजूद शिवसेना को मुख्यमंत्री का ताज इस कदर भाने लगा कि सहयोगी पार्टी ‘भाजपा’ के साथ भी असहयोग आन्दोलन पर उतारू हो गये । अभी 50 हैं, अगली बार 150 पार आने का प्रयास करो तब सपना देखो तो बात बनती है । शुभकामनाएँ!

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