अधूरे ख़्वाब की ताबीर हूँ मैं कहीं
ख़यालों की तेरे तस्वीर हूँ मैं कहीं।।
लम्हा-लम्हा तू साथ रहता मेरे।
तेरे जीवन की जागीर हूँ मैं कहीं।।
हो मुक़म्मल मेरी भी हस्ती कभी।
रंग लाती मुहब्बत की तासीर हूँ मैं कहीं।।
जर्रे-जर्रे में तेरा अक्स दिखता मुझे।
रहगुज़र की तेरे तक़दीर हूँ मैं कहीं।।
चलती रहती हूँ ख़ानाबदोश जैसी कहीं।
उड़ते परिंदों के जैसे नज़ीर हूँ मैं कहीं।।
रह गया ख़्वाब अधूरा ही मेरा।
सियासत की जंजीर हूँ मैं कहीं।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )