मंजू लता (राजस्थान)
किशोर को होली के पर्व से बहुत डर लगता है।
होली के रंग-गुलाल से घृणा का जो सबक बचपन में दिया गया था, शायद उसी कारण उसे होली से नफ़रत है।
टीवी, अखबार और पूरे वातावरण में फागुनाहट की मस्ती तारी है। लोग होली की तैयारियों में मशगूल हैं। इस दिन तमाम तरह की वर्जनाओं से मुक्ति मिलती है। शालीनता का होली से कोई सम्बंध नहीं। साल में एक बार होली के दिन व्यक्ति अपने नग्न स्वरूप का आनंद उठाता है। गम्भीर से गम्भीर आदमी भी होली में कपड़े फाड़ कर सड़क पर रंग और कीचड़ का लुत्फ उठाता है। भांग और अन्य नशे का सेवन करता है। औरतें छुट कर होली खेलती हैं।
किशोर को यह सब नापसंद है।दूसरी तरफ सहकर्मी की धमकियां उसे डरा रही थीं–”बच नहीं पाओगे मियां। पाताल मे छिपोगे तब भी ढूंढ निकाला जाएगा।”
किशोर को मालूम है कि सुबह होगी और देश भर में होली की हुड़दंग शुरू हो जाएगी।सड़कों पर ऑटो-टैक्सी और बसें नहीं चलेंगी।रेलें चलेंगी किन्तु उनमें सफ़र करना ख़तरे से ख़ाली न होगा।
होली के दिन की गई खतरनाक यात्रा को यादकर उसके रोंगटे खड़े हो गए…उस दिन अपने माता पिता और छोटी बहन के साथ अपने गाँव के लिए रेल से जा रहा था।उसकी उम्र उस वक्त दस ग्यारह रह होगी। उन्हें जलंधर से वृंदावन जाना था। खुशी खुशी त्यौहार मनाने जा रहे थे । रास्ते में एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी हुई थी। वे सभी आराम से बैठे थे ,इतने में दस बारह लड़को की टोली आई और सब पर रंग डाल रही थी । उनके पास रंग के अलावा डीजल , अण्डे भी थे । वे सभी पर अपनी मर्जी से रंग लगा रहे थे । लोगों ने विरोध किया तो और ज्यादा ऊधम मचाने लगे थे। उस दिन तो किशोर भी उनकी गिरफ्त में आ गया और उस पर खुब सारा डीजल मल दिया गया । उसे बहुत ही गुस्सा आ रहा था पर वह छोटा था कुछ नहीं कर पा रहा था।
गाँव पहुँचने पर उसके दोस्तों ने उसकी बहुत ही हँसी उड़ाई थी । डीजल भी तीन दिन तक उतरा भी नहीं था । कुछ नहीं हो सकता था क्या करें ……..
समय बीत गया उसने इतने सालों से कभी भी होली नहीं खेली थी। आज पंद्रह साल बाद उसके शादी के बाद की पहली होली है। पत्नी भी खुश मिजाज है तो किशोर को समझाया तब होली खेलने को राजी हुआ । होली बहुत ही शालीनता से खेली गयी । सभी ने गुलाल से ही होली खेली ।
आज किशोर बहुत ही खुश है उसकी पत्नी ने उसका सारा डर खत्म कर दिया और उसकी होली को यादगार बना दिया था। जीवन में होली के आने से सब रंग खिल गये।