हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा की सार्थकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकतर कालजई रचनाएं हिंदी भाषा में ही उद्धृत है । हिंदी हमारी राजभाषा है अर्थात राज्य के कामकाज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा है। अंग्रेजों से स्वतंत्र होने के बाद भारत ने 14 सितंबर 1953 में पहला हिंदी दिवस मनाया । तब से हर साल हम भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान समय में अंग्रेजी भाषा को लोग आधुनिक भाषा मानकर बोलने-लिखने में प्रयोग करते है और उन्हे अधिक ज्ञानी समझा जाता है । वही आज के स्कूल अध्यापक , कॉलेज प्रोफसर और यूनिवर्सिटी छात्र लोगों के सामने हिंदी बोलने में संकोच करने लगे हैं। कभी सोचा है आपने कि हिंदी भाषा के प्रति ऐसी हीन भावना हमारे समाज में कैसे व्याप्त हो रही है ? 2011 की जनगणना के आधार पर भारत में 43.63 % लोग हिंदी बोलते हैं, इस प्रकार हिंदी पूरे भारत में सबसे ज्यादा बोले और समझे जाने वाली एकमात्र लोकप्रिय भाषा है। वर्तमान परिदृश्य में हिंदी के प्रति हीन भावना ने समाज में कई कुरीतियों और दुर्भावनाओं को जन्म दिया है । ऐसा नहीं है कि लोग हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं कुछ कारण तो यह भी है कि लोग आधुनिक बनने के लिए अंग्रेजी का चुनाव कर रहे हैं हिंदी भाषा भारत की राष्ट्रभाषा तो है ही साथ ही किया ग्रामीण क्षेत्रों की सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओं में शुमार है । आज सीबीएसएसी स्कूलों के बाढ़ में प्राइमरी विद्यालयों के बच्चों को अंग्रेजी में बोलने के लिए बाध्य किया जा रहा है, ऐसी परिस्थिति में डर के मारे बच्चे अपनी पूरी बात समाज और शिक्षकों के बीच नहीं रख पाते हैं, उन्हें लगता है, हिंदी बोल देंगे तो हीन भावना के शिकार हो जायेंगे । माना कि अंग्रेजी भाषा , अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोलने-लिखने समझने वाली भाषा है किंतु उससे पहले राष्ट्रीय स्तर पर भी तरक्की करना बहुत आवश्यक है। देश का विकास आज के युवाओं पर है, युवा जब अपने आसपास की समस्या को देखते हैं, उस पर बोलना चाहते हैं । कोई जरूरी नहीं है, अंग्रेजी भाषा देश के सभी लोग समझ पाए ऐसे में अगर छात्र अंग्रेजी बोल भी लेते हैं तो क्या बाकी सभी लोग उसको समझ सकेंगे ? क्या देश में मौजूद सभी समस्याओं का हल निकल सकेगा ? क्या लोग समस्या के समाधान के लिए कदम उठा सकेंगे ? क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम तो भाषा होती है जहां भारत में सबसे ज्यादा लोग हिंदी भाषा को समझते हैं वहां सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी बोलने के लिए बाध्य करना यह अपनी देश की तरक्की को रोकता है। भारत में कई चर्चित अच्छे अखबारों के एडिटोरियल पेज पर समाज में व्याप्त परेशानियों पर निष्पक्ष होकर बड़े अच्छे लेख रोज प्रकाशित होते है । ऐसे आर्टिकल्स यदि इंग्लिश के कठिन शब्दों में लिखे होते हैं तो क्या 60 % जनता समझ पाती पढ़ कर ! ग्रामीण मोहल्ला और शहर के विभिन्न मुद्दों पर बच्चों के दिमाग में विचार बनते हैं जिसे वह सभी देशवासियों के बीच रखना चाहते हैं अगर उनसे हिंदी कम बोलने-लिखने के लिए बाध्य कर दिया जाए तो देश में व्याप्त कुरीतियां, भ्रांतियां कैसे दूर की जा पाएगी ! अंग्रेजी पढ़-पढ़ के लोग दूसरे देश की तरक्की में तो लग जाएंगे लेकिन अपने देश की तरक्की थम जाएगी। अपने भारत देश की तरक्की तो हमारी राजभाषा हिंदी से ही होनी है जिन देशों ने अंग्रेजी छोड़, अपनी मातृभाषा को महत्व दे दिया है जैसे चीन, जापान, फ्रांस देशों ने टेक्नोलॉजी में ज्यादा तरक्की की है जबकि हमारे देश में हिंदी भाषा को तरक्की में रुकावट समझा जाता है। भारतवासी अपने ज्ञान का उपयोग करके अपने देश के विकास में योगदान करें तो न हमें दूसरे देशों में जाने की जरूरत पड़ेगी और न ही बेरोजगारी बढ़ेगी। अंग्रेजी भाषा सीखना जरूरी है लेकिन हिंदी भाषा को हल्के में लेना अनुचित है। युवाओं को प्रोत्साहित करें हिंदी में लेख लिखने की, अपने विचारों को लिखने की, दिमाग में आने वाले सृजनात्मक सुझाव हिंदी में बताने और लिखने की। आज के युवा अपने घर का भी भविष्य है, देश का भी। इनकी खूबियों को इनकी मातृभाषा हिंदी के माध्यम से निखरने दिया जाए। जब-जब हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया गया है, लोग ज्यादा सीख पाए हैं । उदाहरण के लिए स्मार्टफोन आजकल लगभग सभी घरों में हो गया है, मोबाइल चलाने के लिए आज भी गांव के लोग हिंदी भाषा का चुनाव करते हैं और स्मार्टफोन का उपयोग करके देश विदेश की खबरें पढ़ रहे हैं सुन रहे हैं अगर मोबाइल चलाने में सिर्फ अंग्रेजी भाषा का विकल्प होता तो आज लोग स्मार्टफोन नहीं चला पाते। दुकानों में सामान की सूची हो या रेस्टोरेंट में खाने की सूची लगी हो सब जगह हिंदी भाषा का उपयोग होता है। हिंदी भाषा देश की परंपरा, संस्कृति को बरकरार कर रखी है। राजनैतिक प्रचार-प्रसार में बैनर पर भी हिंदी भाषा में अपने वादे लिखे होते हैं ताकि जनता उसे पढ़ सके, समझ सके। राजनेताओं, बड़े-बड़े मंत्रियों के लिए अंग्रेजी भाषा अनिवार्य नहीं है लेकिन पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अंग्रेजी भाषा अनिवार्य है। स्कूल में इस बात के लिए प्रोत्साहित क्यों नहीं किया जाता है कि जो बोलो वह हिंदी में भी बोलो और इंग्लिश में भी बोलो। इस प्रकार से बच्चे ज्यादा सीखते, व्याकरण के नियम और अनुवाद को भी समझ पाते । हिंदी शुरू से ही प्रतिभाशाली भाषा के रूप में सुनी और समझी जाती है हिंदी साहित्य आज भी उच्च कोटि के सर्वकालिक साहित्य में गिना जाता है जब भी बात हिंदी के उत्थान की होती है लोगों की दिलचस्पी उन कालजई रचनाओं की तरफ और हो जाता है जिन रचनाओं को हिंदी की सर्वकालिक श्रेष्ठ रचनाएं कहा जाता है ।
— पंकज कुमार मिश्रा , मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।