वतन की दरदे नेहा की दवा है एकता
गरीब कौम की हाजत रवा है एकता
तमाम दहर की रूहे रवा है एकता
वतन से मोहब्बत नहीवह क्या जाने
क्या चीज़ है एकता क्या है अनेकता
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दे रहा है ज़माना पैगामे पटेल
अब न होगा फिर कब होगा सब मे मेल
जाँ हथेली पे ले के जब निकले पटेल
तो यह समझो चढ़ गयी आज़ादी की बेल
फैल गयी चार सू गाँधी की लगायी आग
कोई फिरंगी से कह दे आग से न खेल
डेड़ सौ साल तक रही हुकूमते अग्रेज
अब हम इस ऊँठ के खुद हाथ से डालेगे नकेल
डा0 जहाँआरा
लखनऊ