अन्न उपजाता है जगत हित
वह जग के लिए वरदान है।
कृषक अपने श्रम से करता
जगतपोषण का अवदान है।
अन्न मोती के लिए किसान
लू के झोंके से भी लड़ता।
गेहूं की बालियों के लिए
सघन शीत लहरों में अड़ता।
क्षुधापूर्ति होता है जग का
कृषकों का ही श्रमदान है।
अन्नदाता है किसान ही
जीवन का पोषण करता।
कनक थाली धरती परोसे
सुख दुख हमेशा कृषक सहता।
जो भी मिला है इस जगत को
कृषक धरा का महादान है।
भोजन मिले दो जून सबको
सहज नहीं है इसको पाना।
करता वह दिन-रात एक तब
मिलता हमें अनमोल दाना।
कृषक अपने श्रम से करता
जगतपोषण का अवदान है।
डॉ सरला सिंह ‘स्निग्धा’
दिल्ली