दोपहर दो बजे का समय था ,मैं सड़क के किनारे खड़ी होकर ई- रिक्शे का इन्तज़ार कर रही थी। वैसे तो विद्यालय में सवा एक पर छुट्टी हो जाती है पर उस दिन विद्यालय में कुछ जरूरी काम होने के कारण काफी देर से छुट्टी हुई थी। साथ की कुछ शिक्षिकाएँ भी अपने -अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर चुकीं थी। मैं उस समय सड़क के किनारे अकेले ही खड़ी थी। तीन चार ई रिक्शा वाले मेरे सामने से ही निकल गये । उनको दूसरी तरफ जाना था। अब मेरा पूरा का पूरा ध्यान ई रिक्शा पर ही केन्द्रित हो चुका था। मैं
बस एक तरफ ई रिक्शा आते हुए ही देख रही थी। ठीक इसी वक्त एक बड़ा- सा भीमकाय सांड़ मेरी तरफ बढता चला आ रहा था। किन्तु मेरा ध्यान बिल्कुल भी उधर नहीं गया की मेरी तरफ मौत दबे पाँव चली आ रही है। वाकई अगर उस
साँड़ ने मुझे उछाल दिया होता तो पता नहीं मेरी क्या दशा होती । ठीक सेकेंडों के हेरफेर में मेरे
पास एक बाइक सवार आकर खड़ा हो गया और उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच
लिया। उधर साँड़ ने जो धक्का मारा उसका पूरा वेग मेरे ऊपर नहीं आ सका और मैं बाल- बाल बच गयी। सांड़ मेरे सामने से गुजर रहा था और मैं उसकी ओर बस ताक ही रही थी। वह बाइकसवार बिना अपनी जान की परवाह किए मेरे सामने आकर मुझे बचा गया। मेरे लिए वह बाइकसवार किसी भगवान या देवदूत से कम नहीं था। उसने मुझसे पूछा-
“मैडम आपको चोट तो नहीं लगी ?”
अरे भइया आपने तो मुझे बचा ही लिया।
“घर जाकर आयोडेक्स वगैरह लगा लीजिएगा,
ताजा चोट है ,अभी पता नहीं चलेगा। बाद में दर्द होता है।” बाइकसवार ने मुझे समझाते हुए कहा।
ठीक उसी समय ई रिक्शा आ गया और मैं अपने घर चली आयी।
जो लोग दूर से देख रहे थे उनका कहना था की अचानक ही वह बाइक सवार आया और फिर
वह कहाँ चला गया किसी को नजर नहीं आया।
यह ईश्वर की अनुपम लीला ही कही जा सकती है। मेरे लिए तो वह बाइक सवार एक देवदूत ही
था।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली