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बिनु हरि कृपा मिलही नही संता..!

भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ! सिद्ध वाक्य है, ये और अगर आपके जीवन में सर्व सुख है , संपदा हैं  धन है , हर प्रकार के भोग विलास की  सुख सुविधाओ का  साधन है , लेकिन अध्यात्म और आत्म चिंतन  नहीं है , तो आप निरीह , व्याकुल और दरिद्र हैं । यकीन मानिए ये संसार के जितने भोग विलास या सुख के साधन देख रहे हैं , सब एक क्षण के अंदर समाप्त हो जाएगा । इस अध्यात्म की दरिद्रता समस्त दुःखों की जननी है , यही मूल है दुःख , पीड़ा की ।  नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं ।  संत मिलन सम सुख जग नाहीं ।।  उधर कागभुशुंडी जी गरूड़ के पूछने पर यही कहते हैं कि दरिद्रता ( जिसको अर्थ का अनर्थ कर दिया गया धन से ) के समान इस संसार में कोई दुःख नहीं है ।  क्योंकि भले आपके पास अथाह धन संपत्ति परिवार से लेकर हर प्रकार के सुख साधन हो , लेकिन जीवन में अगर धर्म अध्यात्म से आप दरिद्र हैं यह अध्यात्म का अभाव है तो वह आपको पूरे जीवन भर दुःख देगा और मात्र यहीं नहीं , विभिन्न योनियों में हर प्रकार का दुःख देगा ।  और संत मिलन के समान कोई सुख नहीं है । क्योंकि संतों महापुरुषों के मिलन से आपको ज्ञान प्राप्त होगा और उसी ज्ञान के बल पर आप जीवन में धन संपत्ति इत्यादि नाशवान वस्तुएं न होने पर भी आत्मिक सुख में आनंदमग्न रहेंगे ।क्योंकि गुरु या संत ही आपके आध्यात्मिक दरिद्रता को दूर करता है जो सभी दुःखों के जननी है । हाल ही में आपने देखा  भोजपुरी कलाकार आकांक्षा दूबे के पास सब था , पर वह आध्यात्मिक दरिद्री थी । जिसके कारण आज वह प्रेत योनि में अथाह कष्ट भोग रही होगी क्योंकि कलुषित हृदय के बाद मानव मृत्यु की शरण में जाना सर्वथा उचित समझ लेता है । उसे मृत्यु के पश्चात ही मोक्ष नजर आता है । यदि आप आध्यात्मिक नहीं तो सुख सुविधाओ के एक सीमा के बाद आपको संसार में जीवन नजर ही नहीं आएगा । पराधीन सपनेहूं सुख नाही की फीलिंग आपको सुख से जीने नही देगी और फिर अंतोगत्वा आपको किसी कमरे में मृत्यु का सहयोग लेना होगा । क्योंकि आध्यात्मिकता ही आपको जीवन दर्शन कराता है ।अध्यात्म ही आपको सुख दुःख को कैसे नियंत्रित करना है और किस परिस्थिति को मन मस्तिष्क या चित्त पर किस प्रकार से प्रभावित करना है , इसकी सीख और ज्ञान देता है ।

                 बतौर लेखक और मोटीवेटर मैं तो उन सबको घोर दरिद्र समझता हूँ जो इस आध्यात्मिक सम्पदा से विहीन हैं । इसलिए अब भी देर मत कीजिये , संत मिलन सम सुख जग नाहीं । कोई आध्यात्मिक पुरुष अगर आपको मिल जाये तो उसे कसकर पकड़ लीजिये क्योंकि यही आपको ज्ञान से पूरित कर उस परम सुख से मिलवा देंगे जिसको प्राप्त करने के पश्चात कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता । अन्यथा सभी का हश्र एक दिन आकांक्षा दूबे ही होगा और सभी एक दिन आकांक्षा दूबे ही बनेंगे ।  और दूसरी विनती यह है कि :- नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं । संत मिलन सम सुख जग नाहीं ।।महापुरुषों की वाणी को , और वह भी परम भागवत मय कागभुशुंडी जी जैसे और स्वयं भगवान की अभिन्न शक्ति गरुड़ जी के वार्ता को अपनी मायिक बुद्धि से अर्थ न करें , न ही गीताप्रेस की बुद्धि से अर्थ करें , वरना यहीं विभिन्न योनियों में चक्की पीसींग एंड पीसींग और एडियां घीसिंग । इसलिए अगर आकांक्षा दूबे नहीं बनना तो :-उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।और क्या ? तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ! उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: !! आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर सच्चाई जानें। उसके प्रति श्रद्धा से पूछताछ करें और उसके प्रति सेवा प्रदान करें। ऐसा प्रबुद्ध संत ही आपको ज्ञान प्रदान कर सकता है क्योंकि उसने सत्य को देखा है। बाकी का बस एक ही उपाय :- भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ।एक उद्योगपति अपनी नाव के पास बैठे एक मछुआरे को मछली पकड़ने के बजाय सिगरेट पीते हुए देखकर चौंक गया। उद्योगपति ने पूछा तुम मछली क्यों नहीं पकड़ रहे हो? मछुआरे ने कहा क्योंकि मैंने आज काफी मछलियाँ पकड़ी हैं। उद्योगपति बोला तुम और अधिक मछलियां क्यों नहीं पकड़ना चाहते हो? मछुआरे ने कहा मैं और मछलियों का क्या करूंगा? उद्योगपति ने जवाब दिया तुम अधिक पैसा कमा सकते हो, तो तुम्हारे पास एक मोटर बोट होगी जिसके साथ तुम गहरे पानी में मछली पकड़ सकते हो। तुम्हारे पास नायलॉन जाल खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा होगा, और उससे अधिक मछली पकड़ोगे फिर अधिक पैसा कमाओगे। इस पैसे की बदौलत जल्द ही तुम्हारे पास दो नावें होंगी। हो सकता है कि तुम्हारे पास जहाजों का एक निजी बेड़ा हो जाए तब तुम मेरी तरह अमीर बनोगे। मछुआरे ने पूछा उसके बाद मैं आगे क्या करूंगा? उद्योगपति ने बताया फिर तुम बैठ जाओगे और जिंदगी भर जीवन का आनंद लोगे। मछुआरे ने उसकी आँखों में आंख डालते हुए आत्मविश्वास से लबरेज होकर पूछा आपको क्या लगता है, मैं अभी क्या कर रहा हूं ।अब उद्योगपति बेबस आंखों से मछुआरे की चमकती आंखों को देख रहा था !कहीं पढा था कि समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी निकली । देवताओं और असुरों में झगड़ा हो गया।। हम शादी करेंगे। हम शादी करेंगे। लक्ष्मी जी ने कहा- ठीक है, बैठ जाओ. मैं डिसाइड करती हूँ, मुझे किससे शादी करनी है? स्त्री अपने मन से हमेशा डिसाइड करेगी, वो चयन किसका करेगी । तो दोनों तरह के लोग लाइन से बैठ गए डिसिप्लिन में । लक्ष्मी जी ने कहा- ये दोनों पागल हैं । रिजेक्ट ! फिर उन्होंने देखा कि – सागर में एक आदमी शेषनाग पर आराम से लेटा है । जैसे कुछ हुआ ही न हो लक्ष्मी जी ने पूछा – इस आदमी को पता है कि मैं आई हूं? मैं इतनी रूपवती हूँ और सब मुझसे शादी के लिए व्याकुल हो रहे हैं? जवाब आया- इसको सब पता है।लक्ष्मी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ- इसे पता है फिर भी ऐसे लेटा है, जैसे कुछ पता ही न हो । कुछ तो बात है । उन्होंने जाकर विष्णु जी को वरमाला पहना दी । कारण – ताकत और उसके साथ संयम भी आप हैंडसम हो । स्मार्ट हो  प्रजेंट ऑफ माइंड अच्छा है दौलतमंद भी हो पर क्या ताकत है? संयम है?  बुद्धिमान लड़कियाँ दिमाग से प्रेम करती हैं सही चुना है और यद्यपि आध्यात्मिक जीवन जीना है तो सन्मार्ग को चुनिए ।

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर

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