अपनों से प्रेम करो, गफलत से दूर रहो।
नशे ने उजाड़ दी, कई जिंदगानियां।
भूल गए फर्ज क्या, दूध का कर्ज क्या,
छाती से चिपका कर, गायी थी लोरियां ।
दुर्घटना ऐसी घटी, माता की छाती फटी ,
नशे ने माताओं की, उजाड़ दी गोंदियां ।
फेरे जब सात लिए, जन्मो को साथ भये,
सपने संजोए दुल्हन, बैठी जब डोलियां।
पत्नी से प्रेम हुआ, नशे से लाचार हुआ,
धुल गया सिंदूर और टूट गई चूड़ियां।
बाहों का झूला बना ,तकिया है सीने का,
पिता की दुलारी बहुत होती है बेटियां ।
पिता का जब साया उठा, बचपन भी रुठ गया,
घेर घेर घूर रहीं, गिद्धों की टोलियां।
सन्तान मनु की तुम हो, पशुता का त्याग करो,
मनुष्यता होती महान ,गढो ऐसी कहानियां।
नशा सुर का अंत करो, हिंद नशा मुक्ति करो,
नर बने नारायण तो लक्ष्मी हो नारियां।
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी, साईंखेड़ा नरसिंहपुर मध्यप्रदेश