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राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है : महात्मा गांधी

महात्मा गांधी ने अदालती कामकाज में भी हिन्दी के इस्तेमाल की पुरजोर पैरवी की थी। वे कहते थे, देश की उन्नति के लिए राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि अपनों तक अपनी बात हम अपनी भाषा द्वारा ही पहुंचा सकते हैं। अपनों से अपनी भाषा में बात करने में आदमी सहज महसूस करता है। इसमें कोई संकोच नहीं होना चाहिए। हिन्दी हृदय की भाषा है। भारत के भविष्य को हिन्दी के भविष्य से अलग नहीं कर सकते हैं। इस देश में संप्रेषण का माध्यम हिन्दी ही हो सकता है।

             महात्मा गांधी ने 29 मार्च 1918 को इंदौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत का राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए।  उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रीय आंदोलन के रचनात्मक कार्यक्रम में स्थान दिया। हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में राष्ट्रीय चरित्र से जोड़कर सही दिशा में राष्ट्रभाषा का एक आंदोलन आरंभ किया। उनका विचार था कि अंग्रेज और उपनिवेशवाद से कहीं अधिक हानिकारक अंग्रेजी है। इसी दृष्टिकोण से यथासंभव प्रयत्न पूर्वक सबसे पहले अंग्रेजी को भारत से हटा देना चाहिए और उसके स्थान पर अपनी भाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहिए। गांधी ने भारत के स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 के अवसर पर डीडीसी को संदेश देते हुए कहा था दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेजी नहीं जानता है।

        14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया। सही मायने में कोई भी देश तब तक स्वतंत्र नहीं कहा जाएगा, जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता है।  गांधी जी का कहना था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। भाषा को सशक्त बनाकर भारतीय समाज में परिवर्तन किया जा सकता है।

            माननीय प्रधानमंत्री जी बहुप्रतीक्षित हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने का यही समय, सही समय है, जब आपके कुशल नेतृत्व में भारत नित्य दिन देश-दुनिया में नए-नए कृतिमान स्थापित कर रहा है। भारत पुनः विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। यह भारत माता की आकांक्षाओं का सम्मान होगा। हिंदी भाषा ही विदेशों में हम हिंदुस्तानियों की भाषा और संस्कृति की पहचान कराती है। यह सर्वविदित है कि हिंदी भाषा दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले दिनों में हम सबके सामूहिक प्रयास से हिंदी भाषा, विश्व भाषा के रूप में भी स्थापित होंगी। पूज्य बापू का सपना साकार होगा। आने वाली पीढ़ियां आपकी सदैव ऋणी रहेंगी।

डॉ नन्दकिशोर साह

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