एक जमाना बीता-सा लगने लगा है।
यह समंदर रीता-सा लगने लगा है।।
मुझको हर पल हारना लगाता अब अच्छा।
यह जहां जीता-सा लगने लगा है।।
हरपल देती अग्निपरीक्षा, सत्य की मैं।
अब यह जीवन सीता-सा लगने लगा है।।
जो भी आया कुछ सिखाने के सबब से।
हर कोई उपदेश गीता-सा लगने लगा है।।
टेढ़े-मेढ़े जिंदगी के मोड़ के संग ये जीवन।
बहती-सी एक सरिता-सा लगने लगा है।।
पढ़ के पन्ने रख दिए, एक ओर जैसे।
मेरा जीवन एक कविता-सा लगने लगा है।।
इस कदर घुल गया है साँसों में कोई।
वो भी मुझे अब “नमिता”- सा लगने लगा है।।
नमिता सिंह जाट नरसिंहपुर