Dr Rajni Yadav
प्रकृति का ये रंग लाजवाब था
इंसान घरो में कैद और बेजुबान आज़ाद था
हवाएँ यू महकने लगी
कोयले पेड़ो पर चहकने लगी
नदिया इतनी साफ थी
जमीन को आसमान से मिलने की आस थी
जो डर अब तक मुर्गियों,मछलियों और बेजुबानो कीआंख में था
उसकी झलक इंसानो में साफ़ थी
यू हरयाली बढ़ती गई
पंछियो की चहक चढ़ती गई
आसमान पर अलग सा नूर था
प्रकृति और इंसान का कोई रिश्ता तो जरूर था
हाथ भी ना मिला सके
गिरी हुई लाशो पर अश्क भी ना बहा सके
अगले पल क्या होगा
इस पल बस यही डर था
मिलजुलकर रहा करो
ज़िन्दगी का बस यही सफर था
शब् भर चाँद था
दिन भर सुरज रहा
दिल में मेरे सवालो का
एक पिटारा हमेशा रहा
क्यों ना नतमस्तक हो जाए
गुजरे हुए ज़माने को फिर से दोहराए
एक छोटा सा घर , घर में आँगन
आँगन में सब्जियां, पंछी और गाय
क्यों ना हम सभी शुद्ध शाकाहारी बन जाए?