जब जब भी तुम्हें ये लगने लगे मैं तुम्हारे करीब हूँ
बात बतला दूँ, इश़्क तो धनवान है मैं बहुत गरीब हूँ ।
दुनिया घुमाने की ख़्वाहिश पूरी नहीं कर सकता हूँ
अटूट वादा कर पूरी ज़िन्दगी बाहों में भर सकता हूँ ।
तुम्हारे हर छोटे बड़े फैसले में जरूर अपनी राय दूँगा
सुबह अलसा कर तुम उठना, बनाकर तुम्हें चाय मैं दूँगा ।
खाना तो नहीं बनाना आता पर सब्ज़ी मैं काट लूँगा
तुम्हारी छोटी मुस्कान के लिए हर दुःख मैं छाँट लूँगा ।
तुम खाना बनाना रसोईघर में हमेशा साथ मैं रहूँगा
तुम्हारी बकबक सुन कर अपनी हर बात मैं कहूँगा ।
छुट्टी वाले दिन हम दोनों बाहर कहीं घूमने जायेंगे
सिनेमा देखेंगे तुम्हारी पसंद की कुल्फ़ी भी खायेंगे ।
रात को मेरे कंधे पर ही सर रख कर तुम सो जाना
हर सुख दुःख सांझा करेंगे तुम ख़्वाबों में खो जाना ।
“मध्यमवर्गीय” हूँ पर हर ख़ुशी देने का इरादा रखता हूँ
धन दौलत नहीं ख़ूब मोहब्बत देने का वादा करता हूँ ।
प्रफुल्ल सिंह (बेचैन कलम)
लखनऊ, उत्तर प्रदेश