कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
मौसम में भले ही अभी गर्मी न आई हो पर पेट्रोल और डीजल की रोज बढ़ती कीमतों ने हाय-तौबा तो मचा ही रखी है । रोज दाम बढ़ रहे हैं । सुबह उठते ही सबसे पहिले यह पता करो कि ‘‘भैया आज पेट्रोल का भाव बिक रहा है..’’ । ऐसा तो नहीं कह सकते की कीमतें जानकर पसीना छूट जाता है पर माथे पर चिन्ता की लकीरें अवश्य खिंच जाती हैं ‘‘याने आज दस किलोमीटर तक जाने में इतने पैसे खर्च करने पड़ेगें’’ । आम व्यक्ति तो आम व्यक्ति की भांति ही सोचता है, वह न तो विपक्ष के नेताओं की तरह सोच पाता है और न ही सत्तारूढ़ दल के नेता की तरह सोच पाता है । वह उतना ही अनुमान लगा लेता है जितनी दूर उसे जाना है, फिर उतने का ही पेट्रोल डलवा लेता हैताकि वह जाए भी और लौटकर वापिस भी आ जाए । वह कुछ दूर तक गाड़ी को यूं ही धक्के मारते हुए ले जाता है ‘‘जितना पेट्रोल बच जाए उतना अच्छा है’’ । उसने पैदल चलने की आदत डालनी शुरू कर दी है, रामदेव बाबा जी इसे ही तो योग करना कहते हैं । योग याने जोड़ना, पर वह जो जोड़ता है उसे ‘‘महंगाई डायन खाय जात है’’ में खर्च करना पड़ता है । कोरोना काल के लाकडाउन ने वैसे ही उसके योग याने जोड़े हुए को तहस-नहस कर दिया है और अब, जब उसे लगने लगा कि वह अपने घर-गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर ला रहा है तब मंहगाई ने योगा सीखने मजबूर कर दिया है । वह बाजार जाता है और किसी भी वस्तु का दाम पूछता है बस यहीं से उसका रामदेव बाबा वाला योगा प्रारंभ हो जाता है ‘‘गहरी सांस लो…..’’वह तो बगैर लिए अपने आप ही निकल रही है । गहरी सांस ले ली अब इसे धीरे-धीरे छोड़ो….वह छोड़ भी रहा है । जब तक वह बाजार में खाली थैला लिए घूमता रहता है तब तक सांसे ऐसे ही आती-जाती रहती है, फिर वह पैदल ही घर की ओर चल देता है । पैदल चलने में उसकी सांसे और फूलने लगती हैं । यही तो योगा है करो और लम्बे समय तक जिओ । राहुल गांधी ने भी गहरी सांस लेकर एक विषय छेड़ दिया । वैसे भी वे जब बोलते हैं तब वह विषय बन ही जाता है । फिर उस विषय पर दिन भर योग और योगा चलता रहता है । वे दक्षिण भारत की माटी पर खड़े होकर उस माटी की बात कह गए यह तो अच्छी बात है पर उस माटी की तुलना अपने ही देश के अन्य राज्यों की माटी से करना तो गलत ही माना जाएगा । हमारा देश तो एक है, राजनैतिक रूप से भी और सामाजिक रूप से भी, स्वभाव में अंतर हो सकता है, वेशभूषा में अंतर हो सकता है पर प्रतिबद्धता में कभी अंतर नही होता । राहुल गांधी ने मालूम नहीं किस परिपेक्ष्य में तुलनात्मक टिप्पड़ी कर दी जो शायद नहीं करनी थी । राहुल गांधी और कांग्रेस ‘‘दूध के जले हैं’’ । वे हर बार हर चीज को ठंडा कर ग्रहण करते हैं पर उनकी बदकिस्मती यह की वह ठंडी वस्तु भी उन्हें जला देती है । वे बायडोर की माटी में खड़े होगें जब उन्हें नारायण सामी के मुख्यमंत्री न रहने का समाचार मिला होगा और तभी गुजरात के निकाय चुनावों में पराजय की सूचना मिली होगी । स्वाभाविक है कि उन्होने ने भी गहरी लम्बी सांस ली होगी…..योगा वाली । इस संास के अंदर जाते समय तो कुछ पता नहीं चला पर सांस जैसे ही बाहर निकली उसमें उनके अंदर के गुप्त भाव और विचार भी बाहर निकल आए । वे योगा के मूड में थे इसलिये जो बाहर निकला उसे निकलने दिया गया । पर इससे दूसरे लोगों को इतना योगा करना पड़ेगा उन्होने सोचा भी नहीं होगा । उनकी वजह से जाने कितने लोगों ने रामदेव बाबा वाला योगा कर लिया । किसी ने गहरी सांस लेकर उसे छोड़ा तो किसी ने अपने चेहरे को भांति-भांति का आकार देकर उनकी आलोचना की । कोई वज्रांसन पर बैठकर कोसता रहा तो कोई सूर्य नमस्कार की मुद्रा में आ गया । इधर दिल्ली की बार्डर पर बैठा किसान तो कब का योगासन कर रहा है । तीन माह बीत चुके है पर उसे योग करने का फल मिल ही नहीं रहा है । लम्बे समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहो तो धूल की परत भी जम जाती है और चेहरे पर नीरसता भी आ जाती है । किसानों के चेहरे पर नीरसता को महसूस किया जाने लगा है । पर राकेश टिकैत ऐसा होना नहीं देना चाहते । वे सभी का उत्साह बढ़ा रहे हैं । इसी उत्साह में उन्होने अपनी फसलें नष्ट कर देने का मंथन प्रस्तुत कर दिया । उन्होने प्रस्तुत ही किया था योजना के रूप में, पर इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ किसान अपने ट्रेक्टर लेकर खेत की मेढ़ पर पहुंच भी गए । कुछेक ने कुछ फसलों पर ट्रेक्टर चला दिए । अरे भाई आप ऐसा कर कैसे सकते हैं । किसान के लिए अपने खेत की फसल तो पुत्रवत होती है, वह बहुत मेहनत कर उसे सहेजता है और पसीने की बूंदों से उन्हें जीवन देता है उसे आप ऐसे कैसे नष्ट कर सकते हैं । किसी भी बात का आंख बंद कर समर्थन कर देना तो गलत है । वैसे यह तो है कि किसान आन्दोलन कुछ ज्यादा ही लम्बा खिंच गया किसी को इने लम्बे खिचंने की उम्मीद नहीं रही होगी । अब सरकार ने भी इस ओर से आंखें बंद कर लीं हैं । सरकार भी रामदेव बाबा वाला योगा कर रही है । आंखें बंद कर देखते रहना वाला योगा । सरकार प्रतीक्षा कर रही है, उसके पास अभी पर्याप्त समय है, उसे कोई जल्दबाजी नहीं है । वह आराम से बैठी योगा कर रही है । वह वो सब होते देख रही है जो हो रहा है । वह पेट्रोल और डीजल के दामों को बढ़ता हुआ मूक भाव से देख रही है, वह बाजार की कीमतों को तिरछी निगाहों से देख रही है । वह सब कुछ देख रही है पर बोल कुछ नहीं रही है । जो योगा करता है उसे मौन रहना पड़ता है । वह मौन है । उसे अभी पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ना है । उसका सारा ध्यान पश्चिम बंगाल पर ही केन्द्रित है । जिस दिन कोई उनकी पार्टी में शामिल नहीं होता उस दिन उनके नेताओं को नींद नहीं आती । उन्हें रोज कुछ लोंग चाहिए जो उनकी पार्टी में आकर उनके योग साधना को फलीभूत करते रहें । । जब वहां चुनाव निपट जायेगंे तब बाकी का मामला देखा और सुना जायेगा । अभी तो सभी लोग केवल ‘‘गहरी संास लो और उसे अनंत गहराई से फिर बाहर छोड़ दो ।’’ अब आप अपने उदास चेहरे पर संतुष्टि के भाव लाओ और सोच लो जो हागा वह अच्छा ही होगा ।