कितना मुश्किल है इस दुनिया में औरत हो पाना
कदम कदम पे परखे जाना जाना अपने आप को पवित्र दिखाना।
यह परख, यह परीक्षा जो कभी खत्म नहीं होती।
क्यों एक बलात्कार में सिर्फ औरत ही है इज्जत खोती
क्यों वजूद उसका इतना दबाया जाता है ।
लोग क्या कहेंगे कहकर चुप कराया जाता है
होते कौन हैं यह लोग कहने वाले ?
होते कौन हैं कि अग्नि परीक्षा लेने वाले?
बस एक अनदेखी डर का साया औरत को हर रोज डराता है।
अंधेरे रास्तों पर किसी की आहट से दम निकल जाता है
क्यों एक मर्द साथ हो जब रात में कहीं जाना हो
ये कैसा खेल है जहां एक मर्द से ही बचाव है और मर्द से ही डराना हो
क्यों एक औरत की ना से पुरुषो का अहंकार हिल जाता है
किसी को मारकर किसी का चेहरा जलाकर आखिर क्या मिल जाता है ?
औरत को आजाद भी छोड़ दिया है और पंख भी कतर दिए हैं
इस पुरुषों वाले समाज में ऐसे अनगिनत जख्म दिए हैं
पर अब यह जख्म नासूर बन गया है।
इसीलिए हर गली में एक निर्भया है
हर गली में एक निर्भया है।
सुनीता राजपुरोहित