अपना अपना ज्ञान है,सब जग रहा बखान।
माने खुद को ही बड़ा,दें न किसी को मान।।
देखो सजा बजार है , दुनिया में सब ओर।
अपना अपना ज्ञान वे , बेच रहे पुरजोर ।।
ज्ञानी सब बनते फिरें , सच से होकर दूर।
अपना अपना ज्ञान ले, फिरते मद में चूर ।।
राम और रहमान का , लेते खाली नाम।
अपना अपना ज्ञान ले, करें उसी से काम।।
अपना अपना ज्ञान है ,अपनी अपनी सोच।
फुरसत है उनपर कहाँ, समझ सकें वे लोच।।
स्वाभिमान रखना सदा, जाना मत यह भूल।
दौलत सारी व्यर्थ है, बिन इसके सब शूल।।
स्वाभिमान मन में बसा,जिनके है दिन रात।
अवसर सब मिलते उसे,अद्भुत उसकी बात।।
स्वाभिमान मत छोड़ना ,कांटे मिलें हजार।
कठिनाई भी है झुके,माने इक दिन हार।।
जीवन है वो ही सफल, स्वाभिमान हो साथ।
दुख इक दिन सब ही मिटें, मंजिल आये हाथ।।
स्वाभिमान वह मंत्र है,चमके सारा गात।
मनसे हटता बोझ है,पाता हर सौगात।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली