अफवाओं उड़ने का दौर चलता है वैसे अप्रेल फूल तो है ही लेकिन अभी हवा उड़ी की 62 के बजाए 63 होगी सेवानिवृति ।बाबूजी को सेवानिवृति के दिन नजदीक आते वैसे वे तीर्थ ,सामाजिक दायित्व आदि कार्य निभाने हेतु सेवानिवृति पश्च्यात किये जाने वाले कार्य की बातें सब को बताते और अपने कार्यकाल की बातों और अनुभव को बकायदा शेयर भी करते |बाबूजी के सेवानिवृति के दिन नजदीक आगये यानि 31 को सेवानिवृत और 30 को घोषणा दो वर्ष सेवाकाल में वृद्धि की | घरों में भजिए तले गए,मिठाईया बाटी गई | पार्टी मनने लगी | साथीयों ने सेवानिवृति पर सेवानिवृत होने वाले के लिए उद्बोधन स्वरुप लिखा गया मेटर को जेब से निकलने का मौका ही नहीं दिया| ऐसा लग रहा था की फिल्म नए अंदाज में रिलीज हो रही | बाबूजी सभी को आप सबका आशीर्वाद है कहते नहीं थक रहे थे | सैलेरी मिलने का दिन उधर आ धमका एक अप्रैल और ऊपर से रविवार का दिन | आदेश का इंतजार ,मन में खुटका पैदा होता ही जा रहा था | साथी बुद्धिजीवी लोग एक से बढ़कर एक राय देने से नहीं चूक रहे थे | व्हाट्सप ,पेपर, खोजी खबरों ने बाबूजी की नींद उडा दी |परंतु मन में है विश्वास का गाना कान में जैसे ही पड़ा | बहारें फिर से आगई | दूध वाला ,किराने वाला ,अखबारवाला ,मकान मालिक ,मिलने जुलने वाले यानि सब बधाई दे रहे थे | कोई तो दुकान के अंदर बैठा हुआ ही कहा रहा था -बाबूजी नमस्कार |”बधाई हो “|बाबूजी ने नए कपड़ों को नाप भी दे दिया, दाढ़ी -कटिंग भी बनवा ली मगर ख़ुशी के कारण सुबह नींद ही नहीं खुली | उनकी श्रीमती ने जगाया और कहा कि आपको ऑफिस नहीं जाना क्या ?और गर्मागर्म चाय के साथ साथ बिस्किट भी दिए | बाबूजी ने अपनी पत्नी को कहा -मै तो सपना देख रहा था कि मेरे दो वर्ष सेवाकाल के बढ़ गए ” | तुमने जगाया तो मालूम हुआ कि सपना भी सच होगया | अंगूठा से पोचा पकड़ने की सोच और बढ़कर जाग्रत हुई | फिर सोचने लगे की 65 हो जाती तो और भी मजा आजाता | क्योकि दूसरे विभागों में तो 65 है | श्रीमती जी टोक ही दिया -बस इतनी ही ठीक है |बेटे को जॉब नहीं मिल रही है | इसका समाधान है क्या ? क्योकि शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षित हुए बच्चो की तुलना में रोजगार का प्रतिशत बहुत ही कम है| दोवर्ष पश्चात् बाबूजी रिटायर हुए तो वे घर पर अपने लिखे नोट्स की कॉपी भी घर ले आए।घर पर उनका टाइम ही नही कटता क्योकिं उन्हें आदत थी।बच्चों को पढ़ाने की।घर पर उनका परिवार था यानि संयुक्त परिवार था।छोटे बच्चे घर मे उधम करते तो।बाबूजी उन्हें टीचर की तरह डांटते।बहू को उनकी ये बात अच्छी नहीं लगती।घर का वातावरण में खींचतान होने लगी।पोतों ने अपने दादा की नोट्स की कॉपी निकाल ली।क्योकिं बारिश के मौसम में उन्हें नाव बनाने के लिए कागज नहीं मिल रहे थे।बच्चों को नाव बनाना तो याद नहीं उन्होंने दादा से जिद्द कि के वो उन्हें नाव बनाकर दे। दादा तमाम खींचतान को भूलकर बच्चों की मदद करने लगे।बहुओं ने सोचा कि ससुरजी अपनी जान से प्यारी नोट्स की कॉपी।अपने बच्चों को नाव बनाने के लिए उन पन्नों का उपयोग कर लेंगे।बच्चों के लिए एक दर्जन छोटी छोटी नाव बना दी।बच्चे उन्हें लेकर गड्डों में भरे बारिश के पानी मे नाव चला कर खुश होने लगे।साथ ही अपने दोस्तों को गर्व से कहने लगे कि मेरे दादा ने बनाकर दी है।उन्हें नाव बनाना आता है।घर की खींचतान खत्म अपने आप हो गई।बच्चों ने अपनी मम्मी को ये बात बताई। अनुभव के नोट्स वाली कॉपी जो संभाल कर रखी थी। समय पर कागज की अनुपलब्धता ने नोट्स कॉपी का उपयोग अपने पोतों की खुशी के लिए कर दिया।समय की बात थी।यदि समय पर नाव नहीं बनती तो बारिश का पानी जो गड्ढे में भरा था वो चला जाता।और बारिश में नाव चलाने का मजा भी नही रहता।खुशी के लिए त्याग करना भी बड़ी बात होती है अब पोतों के संग उनके दोस्त भी नाव बनाने के लिए आए।बाबूजी से नाव बनाने वाले दादा के नाम से बच्चों में मशहूर हो गए।सेवानिवृत्ति के बाद का समय और ज्यादा आनंद मयी हो गया। बच्चे अब उधम करते तो डाटने पर अब कोई नाराज नही होता।ऐसा लगता मानो परिवार कागज की नाव में बैठ कर खुशियों के गीत गा रहा हो।सेवानिवृति के बाद घर का दायित्व बढ़ जाता है | अभी तो आप बाजार जाओ और जल्दी सब्जी भाजी ले आओ और आटा भी पिसवा लाना | जल्दी खाना खाकर आपके साथ शाम को घूमने जाना,है | सभी साथ में घूमने जाने हेतु आपके मित्र आपका इंतजार कर रहे है |
संजय वर्मा “दृष्टि “
125 ,बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार (म प्रa)