हम सभी बखूबी जानते हैं कि, भारत एक बहु सांस्कृतिक और बहुभाषी देश है, लेकिन एक स्तर ऐसा भी है, जहाँ हम एकता के सूत्र में बंधे हुए है और वह है, भावनात्मक एकता का सूत्र। भारत जैसे बहु सांस्कृतिक और बहुभाषी देश को इस एकता के सूत्र में पिरोने के लिए और सुदृढ़ बनाने के लिए अवश्यक हो जाता है कि, भावनाओं और विचारों का निरन्तर आदान-प्रदान होते रहा चाहिए। इस के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है भाषा, कहा भी गया है कि, बिना भाषा के कोई भी राष्ट्र गूंगा होता है। यानि भाषा का होना अत्यंत अनिवार्य है।
भारत में हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सम्पूर्ण सांस्कृतिक विरासत को अपने भीतर संजो हुए है। यदि हम इतिहास में झांककर देखते हैं तो पाते हैं कि, साहित्यिक मनीषी जो काफी हद तक दार्शनिकों और समाज सुधारकों की भूमिका का भी निर्वाह करते थे, उन्होंने देश और समाज के सर्वांगीण निर्माण में हिंदी भाषा का प्रयोग एक औजार (टूल) के रूप में किया है।
इतिहास साक्षी है कि, हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम में देश प्रेमियों और जनसाधारण को जोड़ने में महत्वपूर्ण कड़ी का कार्य किया था। आज भी बड़े ही प्रेम और स्वाभिमान से उच्चारित किये जाने वाले नारे, भारत माता की जय, इन्कलाब जिंदाबाद, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है आदि इसी हिंदी भाषा के दिये गए थे। इस भाषा ने देश प्रेम की भावना को मुखर किया था। शायद यही कारण था कि, 1947 के बाद संविधान निर्माताओं ने हमारे संविधान में देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली इस भाषा के लिए संघ की राजभाषा का विधान निर्धारित किया गया। संघ की राजभाषा का विधान इसके गौरव को कई गुणा बढ़ा देता है।
हिंदी हमारे देश की प्रतिनिधि भाषा है। आज भारत के 29 राज्यों में से लगभग 11 राज्यों में हिंदी बोली और पढ़ी जाती है और लगभग सभी 29 राज्यों में समझी जाती है। जिसका काफी हद तक श्रेय हिंदी फिल्मों को जाता है। आज भारतीयों के लिए यह एक सम्पर्क भाषा का कार्य कर रही है। आज हिंदी जानने वाला न केवल भारत में ही बल्कि विश्व के किसी भी कोने में एकांगी नहीं है। उसे कोई-न-कोई अपना सहभाषी यानि हिंदी का जानने वाला मिल ही जाता है। आज हिंदी भाषा न केवल मनोरंजन की भाषा है, बल्कि यह धीरे-धीरे बाजार यानि वाणिज्य की भाषा का रूप भी धारण कर रही है। बड़ी से बड़ी कम्पनी भी इसी भाषा में अपने विज्ञापन प्रचारित और प्रसारित करती है, लिपि भले ही उनकी रोमन हो जैसे : अमेजोन का “अपनी दुकान”, फिलिपकार्ट का “एकदम पक्का”, एलआईसी का “जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी” आदि। इसके ज्वलंत उदाहरण हैं, जो करोड़ों उपभोक्ताओं को अपनी और आकर्षित कर रहे हैं। यह सब प्राथमिक तौर पर भाषा के बल पर ही संभव हो सका है।
जहाँ तक सरकारी कामकाज को हिंदी में करने की बात है वहां पर संविधान में भारत सरकार की भाषा नीति में कहा गया है कि, “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी और शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग किय जाए। आगे यह भी कहा गया है कि, “संघ का कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओँ में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए औए जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार में लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।”
संघ द्वारा अपने इस कर्तव्य का पालन करने के लिए केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों, स्वायत्त संस्थाओं और निगमों से इसके संवर्धन में पूर्ण सहयोग की अपेक्षा की जाती है। इसके कुशल कार्यान्वयन के लिये भारत सरकार के गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग और सरकारी कार्यालयों उपक्रमों, बैंकों, स्वायत्त संस्थाओं और निगमों के राजभाषा विभाग सतत रूप से प्रयत्नशील हैं। राजभाषा के प्रयोग को बढ़ाने के लिए वार्षिक कार्यक्रम बनाये जाते हैं, राजभाषा लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। कार्यालयीन कामकाज को राजभाषा हिंदी में करने के लिए और बढ़ने की लिए अनेक योजनाएँ बनाई जाती हैं। इन सब सकारात्मक प्रयासों के चलते हिंदी में कार्य करना हमारा संवैधानिक दायित्व भी है। हिंदी हमारे संकल्प, संघर्ष और विकास की परिचायक है। हिंदी भाषा ने राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक और दार्शनिक चिंतन को मुखर अभिव्यक्ति प्रदान की है। हिंदी अपने विपुल शब्द भंडार, लिपि के वैज्ञानिक स्वरूप और अभिव्यक्ति की मुख्य भाषा के रूप में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाती जा रही है और वो दिन दूर नहीं जब सब भाषाओँ की महारानी होगी।
रानी हैं सब भाषाएँ भारत वर्ष की,
इन में मेरी हिंदी महारानी होगी।
सोचकर यह सब मन पुलकित हो उठता है,
उस रोज की शाम भी क्या नूरानी होगी, ?
जय हिंद, जय हिंदी।
© डॉ. मनोज कुमार