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अटल सत्य

पता नही क्यो?

कोई भा जाता

आँखो के रास्ते

दिल में समा जाता।

पता नही क्यों?

उसे दखते ही

प्यार उमर जाता

आँखे चमक जाती

और होठ मुस्कुराता।

पता नही क्यों?

दिल की धड़कने बढ़ जाती

एक एहसास जगा जाती

जैसे सपनों में खोया हूँ

यह आभास क्यों जगा जाता ?

पता नहीं क्यों?

अब न वह बेचैनी है

अब न वो चमक रही

बीते दिन महीने वर्षों

पल-पल पग-पग बनती

तेरी -मेरी जीवन की दूरी है।

पता नही क्यों?

कहते है सब जाने वाले

लौटकर आऊँगा वादा न करना

जो वादा था मेरा उसका जिक्र न करना

दुख होगा तुम्हें ये सोचकर

मै जाने वाला हूँ तुम्हें छोड़कर ।

पता नही क्यों ?

थक जाते ये शब्द

शायद सीमित मात्रा है

जानते है सब

वैद्य हकीम सबकी एक हाल

फिर भी न कोई बदले चाल।

पता नही क्यों?

कोई त्यागना नही चाहता “तन”

दिन रात भोग विलास और “धन”

पर जीवन का परम “सत्य”

मौत तो आएगी यह अटल “सत्य”।

                              “आशुतोष”

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