अब हमें 74वें स्वतंत्रता दिवस पर इस बात का गहनता से विचार करना है कि आज तक कितना स्वरूप बदला,बदला भी है, तो दिशा सकारात्मक है क्या? इतनी अधिक जनसंख्या औऱ विविधता से भरे राष्ट्र में सबको साथ ले कर चलना,सब को बराबर मान-सम्मान देना,किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे,इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी हैं।15 अगस्त1947 को जब भारत आज़ाद हुआ तब सरदार पटेल,भीम राव अम्बेडकर जैसे उच्च आदर्शों वाले लोगों की संख्या अधिक थी। देश भक्ति,निष्ठा,उत्साह तथा अपनेपन का माहौल था। लौहपुरूष सरदार पटेल के कारण भारत का एकीकरण हुआ। उस समय की अनसुलझी कश्मीर समस्या आज भी
है।पी ओ के पर पाक का ही कब्ज़ा है,घुसपैठ जारी है,धारा 370 हटने के बाद भले ही पूरा भारत अब एक जैसा हो गया हो, देशभक्ति की भावना का संचार हो गया, पर अब एक साल होने को
हुआ,प्रतिबंध पूरी तरह नहीं हटे,कुछ बड़े नेता अभी भी नज़रबंद है, हालात पहले से सामान्य है,तो अब सभी के साथ पूर्ण सामंजस्य होना ही चाहिए।
राष्ट्रभक्ति की भावना तो हर निवासी के दिल में होनी चाहिये पर उससे भी ऊपर साम्प्रदायिक सद्भावना का होना बहुत जरूरी है। हरेक के मन में भारतमाता के प्रति यह भावना होनी चाहिए-
“तेरी गौरव गाथा जननी,शतमुख शत शत बार कहें, तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।”
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने उस समय की परिस्थिति के अनुसार सूझबूझ से विकास के मार्ग पर देश को आगे बढ़ाया। शास्त्री व इंदिरा जी ने राष्ट्र स्वाभिमान की रक्षा व विकास की निरंतरता को बनाये रखा।
मिली जुली सरकारों में कुछ मुद्दे ठंडे बस्ते में डाल विकास कार्य होते ही रहे। लम्बे अंतराल के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार मोदी जी के नेतृत्व में आई अब दूसरी पारी में हैं।
विदेशों में भारत का मान-सम्मान बढ़ने के साथ यह भी जरूरी है कि देश के अंदर भी मतैक्य हो, समरूपता हो, आपस में प्यार हो। लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर हो। सिर्फ विरोध के लिये विरोध कटुता,वैमनस्य को बढ़ाता हैं, राष्ट्रीय एकता भी तार तार होती हैं।यह भी सुखद ही है,सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पांच दशकों से चले रहे विवाद के अंत के बाद राम मन्दिर निर्माण के लिये भूमि पूजन भी हाल ही में हो गया।प्रचंड बहुमत की महत्ता भी तभी है,जब अल्पमत की बात भी सुनी जाए, अन्यथा हर और उहापोह,असमंजस दुविधा की ही हालत होगी जैसा अब पूरे राष्ट्र में हो रहा है।
नेकनीयती ,सही भावना को ले कर ही पारित नागरिकता संशोधन कानून को ले चला
आंदोलन भयानक दंगे व सेंकडों मौतों के बाद भले ही अभी शांत है परन्तु पक्ष विपक्ष डटे रहे कर
राष्ट्रीय अस्मिता को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं।कूटनीतिक सूझबूझ से जल्दबाजी में पास कराये बिल को अनजाने में मुस्लिम अपने खिलाफ समझ बैठे हैं, पक्ष हो कर रहेगा की हुंकार भर रहा है ,साथ ही एन सी आर को लेकर अलग अलग ब्यान। हमारे लोकतंत्र का भी भला
इसी में है लम्बे विरोधाभास को जल्द सुलझाया जाये।
अब यह बात बहुत सकून देती है कि पाकिस्तान को उसकी हरकतों का माकूल जवाब मिल रहा है, आतंकवाद में काफी कमी आई है, चीन भी पहले की तरह आंखे नहीं
तरेर रहा, हाल ही में हुई गलवान की घटना ने उसकी हेकड़ी निकाल दी है,अन्य पड़ोसी देशों से हमारे सम्बन्ध अच्छे हैं, भारत की अब एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में मान्यता हैं, बड़े बड़े अंतराष्ट्रीय मंचो पर उसकी बात सुनी जाती हैं। हर कोई मानता है कि भारत स्वयं में एक विस्तृत,व्यापक सम्भावना से भरा विशालकाय बाजार हैं, हर बड़ा देश टकटकी लगाये हमारे साथ सहयोग का उत्सुक हैं। यही हमारे आज़ाद भारत की,लोकतंत्र की महानता है।
भले ही आज जी डी पी आज निचले स्तर पर है, विकास दर कम है, महंगाई बहुत बढ़ी है, बेरोजगारी का स्तर पिछले एक दशक में सब से कम है, पर विश्व अर्थ व्यवस्था को हम पर भरोसा है कि जल्द ही हम इससे निजात पा लेंगे, हमें भी भरोसा है अपने पर,अपने कर्णधारों पर।
मार्च में पनपी कोरोना महामारी ने जीने के सारे अर्थ ही बदल दिये हैं।इस बार आज़ादी का जश्न हमें कोरोना की भयावह स्थिति के बीच मना रहे हैं हमें स्वयं को हर हालत में यह एहसास कराना है कि
“हम उफनती नदी हैं, हमको अपना कमाल मालूम है, हम जिधर भी चल देंगे,रस्ता अपने आप बन जायेगा।”
आज भारत विज्ञान, अंतरिक्ष, ऊर्जा, उद्योग, रक्षा हर क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है। इसरो की ज,नासा की तरह विशिष्ट पहचान है। इन सब उपलब्धियों पर आज पूरे देश को गर्व है।
विश्व की चौथी महाशक्ति हम जल्द ही तीसरी महाशक्ति होंगे। आज पूरे विश्व में भारतवासियों को सम्मान व विश्वास की दृष्टि से देखा जाता है।
सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में तो अमरीका व चीन भी लोहा मानता है।
हमारा भारत यूं ही महान राष्ट्र,महान लोकतंत्र नहीं बना, इसमें लाखों स्वतन्त्रता सेनानियों,
क्रांतिकारियों के अमिट बलिदान की अमर छाप है। स्वतन्त्र भारत के सभी नेताओं, सभी सरकारों, सभी समुदाय के लोगों का गतिशील, कर्मठ विशाल योगदान है, कोई भी यह नहीँ कह सकता कि हमने ही किया बस,बाकियों ने कुछ नहीं किया। राष्ट्र के अनवरत विकास में सभी पीढ़ियों
का,हर समुदाय का, किसी न किसी रूप में बराबर योगदान है। आखिर सब के ही सहयोग से तो सात दशकों से भी अधिक के समय में यह समृद्धि का विशाल वटवृक्ष खड़ा हुआ है। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर आओ शपथ लें कि हम दृढ़ विश्वास,मज़बूत इरादे के साथ, सभी भेदभाव को त्याग ,मिलजुल कर राष्ट्र को समृद्धि की नित नई नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे क्योंकि-
“बांधे जाते इंसान कभी,तूफान न बांधे जाते हैं, काया जरूर बांधी जाती,बांधे न इरादे जाते हैं”-
राजकुमार अरोड़ा’गाइड’
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरियाणा)
मो०9034365672