बस स्टैंड पर रुकी तो मैंने राहत की सांस ली। कंडक्टर की आवाज़ बस में गूंजी कि बस आगे नहीं जाएगी सबको यहीं उतरना पड़ेगा। मैंने उतरने के लिए अपना बैग उठाया और बस के दरवाजे की और बढ़ा। मेरे साथ वाली सीट पर बैठा लड़का अब भी सो रहा था। मैंने उसे जगाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं उठा। मेरे बताने पर कंडक्टर ने भी आवाज़ लगाई परंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ। कंडक्टर ने उसके मुंह पर पानी भी डाला किंतु कोई असर नहीं हुआ। कंडक्टर ने ड्राइवर से गाड़ी को पुलिस चौकी के सामने तक ले जाने के लिए कहा तो मैं परेशान हो गया। मैंने उसे समझाया कि पहले अस्पताल ले चलते हैं लड़के को, नहीं बात बनी तो पुलिस को भी बुला लेंगे लेकिन पहले उसका उपचार होना ज़रूरी था। मेरी बात कंडक्टर ने इसी शर्त पर मानी कि आगे सब कुछ मैं संभाल लूंगा और ड्राइवर तथा कंडक्टर के उपर कोई आरोप नहीं आएगा। अस्पताल में इमरजेंसी में भर्ती करवाया। उपचार शुरू हुआ तो मैंने फोन करके मां को बता दिया कि बस खराब हो गई है इसलिए रात में शहर में ही रुकना पड़ेगा।
लड़के को डॉक्टर ने ग्लूकोज चढ़ना शुरू किया और इंजेक्शन की सहायता से दवाई भी। कई घंटे बीतने पर भी उसे होश नहीं आया। मैं उसके बेड के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। पता नहीं कब मेरी आंख लग गई। अचानक कुछ गिरने की आवाज़ सुनकर मेरी नींद खुल गई। देखा तो लड़का बेड से उतरने की कोशिश कर रहा था। उसका हाथ लगने से मेज पर रखा गिलास नीचे गिर गया था। मैंने उसे वापिस बिस्तर पर लिटा दिया। गिलास उठाकर रखा। वह अब जाग रहा था। पूछने पर उसने बताया कि दो दिन से बस में सफर कर रहा था। रोजे चल रहे हैं इसलिए कुछ खाया नहीं। वह अपने घर वापिस आ रहा था। घर में उसकी अम्मी और चार छोटे भाई बहन और थे। अब्बा कई महीने पहले काम के लिए सऊदी चले गए थे। घर का खर्च चलाने के लिए पैसे चाहिए थे इसलिए उसकी अम्मी ने पढ़ाई छुड़वाकर उसे अपने भाई के पास काम सीखने भेज दिया था। वह वहीं से वापिस लौट रहा था। उसकी कमाई के पांच हज़ार रुपए लेकर। ईद पर अम्मी ने घर बुला लिया था। उसकी बात सुनकर मुझे दुख हुआ लेकिन खुशी इस बात की थी कि वह ठीक था। अगले दिन मैंने अस्पताल का बिल चुकाया और उसे लेकर उसके बताए रास्ते पर चल पड़ा। उसके घर के बाहर पहुंचकर उसके हाथ में उसके पांच हज़ार रुपए रखे तो वह चौंक गया।,” पर भाई मेरा इलाज भी तो कराया है आपने।” मैंने उसे समझाया कि अभी घर पर अम्मी पैसों के साथ तुम्हारा इंतजार कर रही है इसलिए मैं अपने पैसे बाद में लूंगा।” उसे बहलाने के लिए मैंने कह दिया,” तुम्हारे अभी सऊदी से आ जाएं तो अगली ईद पर ईदी दे देना मुझे।” मेरी बात सुनकर वह हंसता हुआ एक छोटी सी गली में मुड़ गया।
घर पहुंचा तो मां का रो रोकर बुरा हाल था। कल से यही सोच रही थी कि बस ही खराब हुई थी या कोई दुर्घटना घट गई थी मैंने सूचना ही गलत दी थी। पूरा दिन लगा उसे समझाने में कि क्यों कल घर नहीं पहुंच पाया था। सही बात जानकर उसने दार्शनिक के अंदाज़ में कहा,” अल्लाह के बंदों की हिफ़ाज़त करना ही उसकी सबसे बड़ी इबादत है।”
मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हुई तो नौकरी के लिए आवेदन देने का सिलसिला शुरू हुआ। मां ने मेरी पढ़ाई पूरी करवा दी थी पिताजी के गुजरने के बाद भी। अब मेरी बारी थी अपना फर्ज निभाने की। प्रतिदिन ऑनलाइन आवेदन कर रहा था। कहीं से बुलावा आ जाता तो इंटरव्यू देने भी जाता था। रमजान का महीना चल रहा था। मेरे मुस्लिम दोस्त मुझे रोज़ याद दिलाते थे कि ईद उनके साथ ही मनानी है। नौकरी मिल भी जाए तो ईद के बाद ही जाना है। मैं चुपचाप सहमति में सिर हिला देता था। मां दिन रात मेरी नौकरी के लिए प्रार्थना कर रही थी। ईद के दिन मैं सुबह ही तैयार होकर अपने मुस्लिम दोस्तों से मिलने जा रहा था तभी दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो देखा दो व्यक्ति बाहर खड़े थे। उनकी उम्र में अंतर था। छोटे वाले की सूरत देखी भाली लग रही थी। मुझे देखते ही दोनों ने एक साथ कहा,” ईद मुबारक भाईजान।” मैंने भी जवाब में मुबारकबाद दी लेकिन उन्हें पहचान नहीं पा रहा था। तभी छोटे वाले ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा,” अब्बू यही हैं अल्लाह के नेक बंदे जिन्होंने मेरी जान बचाई थी।” अब मुझे सब याद आ गया।,” ओह, आदिल तुम हो मेरे भाई। ईद मुबारक हो तुम्हे। एकदम हुलिया बदल गया है यार।” आदिल जोर से हंसा।,” भाईजान अब्बू लौट आए हैं, इसलिए फिर से पढ़ाई शुरू कर दी है।” तब तक मां भी बाहर आ गई थी। उसने उन दोनों को घर के अंदर बुलाया। ,” अपनी ईदी कुबूल करें जनाब।” आदिल के साथ आए दूसरे व्यक्ति ने एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया। मैंने लिफाफा खोलकर देखा तो उसमे दस हज़ार रुपए का एक चेक था।,” इतने रुपए कैसे रख सकता हूं चाचा जान ?” मैंने लिफाफा लौटाना चाहा तो आदिल के अब्बू बोले,” बेटा चाचा बोलकर ईदी को मना नहीं करते हैं। रख लो मेरे आदिल की जान बहुत कीमती है ये रुपए तो बहुत कम हैं। तुमने अपनी मां को बिना बताए अपनी कॉलेज की फीस के पैसों से आदिल का इलाज़ करवाया था। मैं सब जानता हूं।” मां मेरी और देख रही थी क्योंकि यह बात उसे भी पता नहीं थी। मैंने लिफाफा उनके हाथ से ले लिया। थोड़ी देर बाद वे दोनों चले गए। उन रुपयों को मैंने खर्च नहीं किया। खुदा की खिदमत के लिए मेरे घर के मंदिर में रख दिया। ईद मुबारक।
अर्चना त्यागी जोधपुर राजस्थान