समाज में भी बड़ी प्रतिष्ठा थी। परन्तु अचानक कम्पनी घाटे में चली गई। देखते ही देखते वो कर्ज में डूब गए। हवेली भी गिरवी रखी गई। आमदनी के सभी स्रोत बन्द और व्यवसाय ट्ठप्प हो गया। उद्दमी व्यक्ति थे, फिर से प्रयास करने लगे परन्तु बात बन नहीं रही थी। नौकरी भी तलाश की। मिली भी पर वक़्त बहुत सख्त था सो रुकी नहीं। अब दिन रात चिंता सताती की हवेली कैसे बचाई जाए।
सेट्ठजी अवसाद में डूब गए। मित्र मंडली जो कभी साथ नहीं छोड़ती थी, अब बचकर निकलने लगी। बहुत कोशिश करने पर भी हवेली को बचाने के लिए पैसे नहीं जुटा पाए।इतनी बड़ी रकम आसानी से कैसे मिलती। कोई उपाय नजर नहीं आता था।दिन रात पीने लगे। हवेली को बचाने की आखिरी उम्मीद भी उनकी गिरती सेहत के कारण धूल में मिलती नजर आने लगी।पूरा परिवार ही अवसाद में डूब चुका था। किसी को कुछ नहीं सूझता था। दो दिन बाद हवेली कि नीलामी थी।
अगले दिन शाम को उनके घर की घंटी बजी। सामने एक बहुत ही आकर्षक युवक खड़ा था।द्वार खुलने पर वह अंदर आया। सोफे पर बैठ गया। हाल चाल पूछे। कोई उसे पहचान नहीं पा रहा था। थोड़ी देर बातचीत करने के बाद उसने पूछा सेठजी कन्हा हैं ? सब चुप। वो रो दिन भर नशे में ही रहते थे। किसी से बात करना तो दूर कुछ दिनों से मल मूत्र का भी उन्हें आभास ना था। उनके पास जाने में भी बास आती थी।
उनकी बेटी ने चुप्पी तोड़ी। ” पिताजी बीमार हैं। दूसरे कमरे में आराम कर रहे हैं।” क्या आप मुझे उनसे मिलने देंगी ?” आगंतुक ने विनम्रतपूर्वक आग्रह किया।” जी वो मिल पाने की स्तिथि में नहीं हैं।” उसने झिझकते हुए उत्तर दिया। “मै बहुत दूर से उनसे मिलने के लिए ही आया हूं। किसी भी हालत में मेरा उनसे मिलना जरूरी है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि उनके पास मुझे ले चलें।” घर के सभी सदस्य एक दूसरे की और देखने लगे।फिर कुछ सोचकर बेटी ने ही चुप्पी तोड़ी।” जैसी आपकी इच्छा। आइए मेरे साथ।” कहकर घर के भीतर वाले कमरे की ओर चल पड़ी।
सैट्ठजी के कमरे में पन्हुचकर आगनतुक ने उनके चरण स्पर्श किए। फिर भाव विभोर होकर उनसे लिपट गया। उनकी हालत देखकर उसकी आंखों में आंसु थे। घर के सभी सदस्य हतप्रभ थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद सेठजी ने आंखें खोली। “राघव” धीरे से उनके मुंह से निकला।” हां चाचाजी उठो। हवेली को छुड़ाने जाना है आज”। उसने उत्तेजित स्वर में बोला। सेठजी की आंखों से टप टप आंसु गिरने लगे। ” नहीं बेटा हवेली अब नहीं बचेगी। तुम कुछ नहीं जानते हो”। मुंह पर दोनों हाथ रखकर रोने लगे। उसने अपने रुमाल से उनके आंसू पोंछे और उन्हें उठाने की कोशिश करने लगा।,”उठाे, चाचाजी हवेली छुड़ाने भी जाना है। मैंने सब व्यवस्था कर दी है लेकिन कागजी कार्यवाही के लिए आपको साथ जाना पड़ेगा।,” परंतु तुम्हे कैसे…?” कहते कहते उनकी ज़बान लड़खड़ा गई। कृतज्ञता मिश्रित आश्चर्य का भाव उनकी आंसुओं से भरी आंखों में भी स्पष्ट दिख रहा था।” बताऊंगा, अभी आप मेरे साथ चलिए।” कहकर उसने उन्हें बिस्तर से उठाया और अपनी चमचमाती गाड़ी में बैठाकर ले गया। कुछ घंटों बाद वे दोनों वापिस लौट आए। हवेली के काग़ज़ उनके हाथ में थे। सेठजी उसके साथ सोफे पर ही बैठ गए। बहुत दिनों बाद सामान्य दिख रहे थे।सभी घरवाले भी उसी कमरे में बैठे थे।,” मेरी कंपनी में काम करता था पहले,इसके पिता कैंसर के मरीज थे। उस समय इसकी मदद की थी जिसे इसने सूद समेत वापिस लौटा दिया है। बड़ा आदमी बन गया है अब।” सेठजी का एक अलग ही व्यक्तित्व आज नज़र आ रहा था। सभी घरवालों की आंखों में खुशी के आंसू थे। सब चुप थे, क्या बोलें समझ नहीं आ रहा था। इच्छा हो रही थी कि भगवान का दूत बनकर आए उस युवक के पैर छू लें। स्थिति को भांपकर उसने विनम्रता पूर्वक सेठजी से जाने की आज्ञा मांगी।,” एक मीटिंग के सिलसिले में इस शहर में आया था चाचाजी। आपके बारे में पता लगा तो पहले यहां चला आया। अब मुझे जाना होगा, सब लोग मेरा ऑफिस में इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन आप अपना वादा पूरा करना चाचाजी।” उसने सेठजी की ओर मुस्कुरा कर देखा और चला गया। सभी जानना चाहते थे कि वादा क्या किया था सेठजी ने। सेठजी ने नज़रे झुका ली। धीमे स्वर में बोले,” अब हैसियत में बहुत फर्क आ गया है। होनहार लड़का था इसलिए इसके पिता से बेटी से इसकी शादी कराने का वायदा किया था। लेकिन अब इसके कर्जदार होकर रिश्तेदार नहीं बन सकते हैं।” सब कुछ अप्रत्याशित था। सभी लोग एक दूसरे का मुंह देख रहे थे।
जीवन सामान्य हो गया था। पहले हवेली फिर कारोबार सब वापिस लौट आया था। सेठजी की बेटी भी अब उनके साथ ही काम कर रही थी। घर में सभी चाहते थे कि उस भगवान के दूत से उसका रिश्ता कर देना चाहिए। परंतु सेठजी हर बार चुप हो जाते थे। एक दिन सब घर पर ही थे तब राघव अपनी मां के साथ आया। सगाई की पूरी तैयारी के साथ। सेठजी के छोटे भाई ने अपनी ज़िम्मेदारी पर रिश्ता स्वीकार कर लिया। बिटिया रानी को राघव ने महारानी की तरह अपने घर में रखा है। सेठजी को अब भी गुरु के जैसा सम्मान देता है और सेठजी के छोटे भाई को अपने पिता समान ससुर का मान देता है। बाकी घरवाले उसे अब भी भगवान का दूत ही मानते हैं। हमारे अच्छे कर्म किसी न किसी मध्यम से हमें भगवान के दर्शन करवा ही देते हैं।
अर्चना त्यागी