हम अक्सर कहते हैं…
इस दुनिया में इतनी उथल पुथल क्यों है
कोई किसी की नहीं सुनता
हर कोई अपनी राह चलता है….
कोई सामंजस्य नहीं है..
ज़रा सोचो..
हमारा शरीर भी तो हमारी दुनिया है..
क्या इसमें उथल पुथल नहीं होती
हर अव्यय अपनी चाल चलता है..
मन कुछ कहता है , दिल कुछ चाहता है
दिमाग कुछ सोचता है, पेट कुछ मांगता है,
विचार कुछ उठते हैं ,ज़ुबाँ कुछ कह जाती है
ज़मीर सच बोलता है, काम कुछ और कर जाते हैं,
कहीं हाथ चल जाते हैं ,कहीं पांव चल देते हैं,
कितना सामंजस्य है?
मन की शान्ति के लिए
दिमाग के संतुलन के लिए
सुखी जीवन के लिए,
एकाग्रता , ध्यान , भक्ति और योग के सहारे
अपने आप में सामंजस्य ज़रूरी है….
बाकि रही दुनिया ..
इस को तो बाद में देख लेगें…
….जय प्रकाश भाटिया