तेरी याद में मैं दिन-रात भुलाए बैठा हूं
आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं।
वह जो तेरी कमी थी मेरे सीने में,
उसकी मजार बनाए बैठा हूं,
आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं।
जमाने की परवाह ना मुझे कल थी ना आज है
मुझे तो लग रहा था तू हर हाल में मेरे साथ है,
तेरे साथ बीते हर लम्हे को
एक झूठा किस्सा बताएं बैठा हूं,
आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं।
मैं वह नहीं जो तुझसे मोहब्बत की भीख मांगू
मैं वह नहीं कि तेरे संग बीते वह नसीब मांगू ,
तुझे देखना है तो आकर देख
मैं महफिल सजाए बैठा हूं,
आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं।
— जयति जैन “नूतन” —-