खुशी शब्द ही खुशी का एहसास कराता है,चेहरे पर मन्द मुस्कान,मन में उमंग सी
महसूस होती है। खुशी की तो हर किसी को तलाश रहती है,खुशी तो हमारे अंदर से ही तो उपजती है बस हर परिस्थिति में अपने आप को सयंम के साथ सब्र रखते हुए मन की गहराइयों से अनुभव करना है,कुछ न कुछ कमी तो हरेक के पास मिलेगी,आसमाँ के पास भी जमीं नहीं है, ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं में रहने वाला सेठ चिन्तित दिखाई देता है नींद उससे कोसों दूर होती है,एक दिहाड़ी मजदूर व उसका परिवार मस्त हो कर किसी बात पे ठहाका लगा रहा होता है, ज़मीन पर लेटते ही गहरी नींद के आगोश में चला जाता है।
खुशी तो हमारे मन का एहसास है,भावनाओं की अभिव्यक्ति है।खुशी की तलाश में सबसे बड़ी बाधा है अपने ही सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा व वास्तविकता को
स्वीकार न करने की प्रवर्ति।अपनी क्षमता का आकलन हमें खुशी देता है,अक्षमता
का थोड़ा सा भी एहसास खुशी से दूर कर देता है गर इसी को स्वीकार कर लें या दूर कर लें तो खुशी फिर से वापस।आशा चाहे कितनी भी कम हो ,निराशा से बेहतर होती है।परछाई से कभी मत डरिये,उसकी उपस्थिति का अर्थ है कि कहीं
रोशनी है।
खुश रहना अपनी आदत बना लीजिये! परिस्थिति चाहे कैसी भी हो उसे प्रभु की
मर्ज़ी मान खुश रहिये। अतीत से सबक लेते हैं,वर्तमान में खुश रहते हैं,सन्तुष्टता
का अनुभव करते हैं,भविष्य के प्रति सजग रहते हैं तो आप से बड़ा भाग्यशाली और कोई है ही नहीं और यह आप के पास प्रभु का दिया अमूल्य आशीर्वाद, धरोहर, पूंजी और विरासत है जो कभी भी आपको कभी भी निराश,हताश,उदास व मायूस नही होने देगा।अगर आप खुश है, खुशी की तलाश नहीं करते खुद को हर समय खुश अनुभव करते हैं तो आपका मकान,मकान नहीं घर है,बाहर से आलीशान है तो अन्दर भी सुनसान नहीं है,क्योंकि परिवार के सब सदस्यों में आपसी समन्वय,प्यार,समझ व आकर्षण,मान सम्मान है।
खुशी,प्रसन्नता व उल्लास की यह सीढ़ी तो प्रत्येक के पास है, बस पहला पग पहली सीढ़ी पर रख,उसे हर हाल में बरकरार रखते हुए मस्त व आनन्दमय होने का अभिनय नहीं करना है, ऐसे में अभिनय कभी भी लम्बे समय तक नहीं रह सकता और अंदर ही अंदर कचोटता है सो अलग। स्वयँ पर विश्वास करके ही बदलाव आएगा।परिवर्तनों को करने व अपनाने का यही समय है,जो कार्य करना चाहते हैं,उसे करें,परमात्मा का ही आशीर्वाद अपने ऊपर महसूस करें,मुस्कराएं और कहें-“यह भी बीत जायेगा,सब बढ़िया होगा”बस यह सोचते ही जिन्दगी नए ढंग से नई नवीन सुबह नये नवेले अंदाज़ में, हर पल,हर क्षण तुम्हारा स्वागत करती नज़र आयेगी।
सोचें,बहुतों के मुकाबले में मेरा खुशी का खजाना भरपूर है,जो हैं उससे ज्यादा के लिये ईमानदारी से कोशिश कर के पाना मेरा गर्व है, अभिमान से भरा मुकद्दर है।
खुश रहने की दिशा में,अपने कार्य के प्रति समर्पण व दूसरा क्या करता है,बदले में
उसे क्या मिलता है, इस पर ध्यान न देने की प्रवर्ति बहुत जरूरी है। खुशी एक शब्द मात्र नहीं है,अपितु वह खज़ाना है जिसकी सभी को तलाश रहती है। हमारा
दृष्टिकोण ही खुशी व नाखुशी का द्योतक है। खुशी व्यक्तित्व विकास का महत्वपूर्ण
सोपान है,गर हम अकारण चिन्ता करते रहेंगे तो हम अपने पास खुशी का खजाना होते हुए भी खुशी का अनुभव नहीं कर पाएंगे।हमें हर हाल में अपनी खुशियों का
हनन नहीं होने देना,मनन कर उसे कई गुना बढ़ाना है। यही बात मेरी एक कविता
के एक अंश में इंगित है-“मंगल पर जीवन सब ढूंढते हैं,जीवन में मंगल ढूंढे तो कोई बात बने,मिल जाये अपार वैभव भी तो क्या,खुशी भी संग मिले, तो कोई बात बने।”
— राजकुमार अरोड़ा गाइड
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरियाणा)