मुसीबतें तो आएगी
पर फिसलना तुम नहीं।
जिन्दगी तो ये सतायेगी
मगर तुम डरना नहीं।
बड़े बड़े चले आते यहां
कष्टों केभी पहाड़ कभी।
दोस्ती को भुला कर के
साधते हैं दुश्मनी सभी।
लेता है जीवन परीक्षाएं
कभी तो बड़ी से बड़ी।
जूझते रह जाते उनसे
अड़चनें जो आन पड़ीं।
जिन्दगी तो ये सतायेगी
मगर तुम डरना नहीं।
राम और कृष्ण ने भी
सहे कष्ट जो भी मिले।
एक दिन फूल राहों में
सुनहरे उनके थे खिले।
राहे सच्चाई पर ही यहां
मानव तुम सदा चलना।
ईमान तेरा हो धर्म सदा
गैरों को न कभी छलना।
जिन्दगी तो ये सतायेगी
मगर तुम डरना नहीं।
कंटक राहों से चुनकर
कुछ सुमन बिछा देना।
दर्द पीकर दूसरों के भी
उनके चेहरे खिला देना।
ईश्वर तेरे ही मन में बसा
उसी से बात किया करो।
हारोगे नहीं कभी साथी
जिंदगी जी से जिया करो।
जिन्दगी तो ये सतायेगी
मगर तुम डरना नहीं।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली