वर्ग
उनके प्रवचन सुनकर भक्त ने पूछा
आप इससे पूर्व ज्यामितिके अध्यापक थे क्या?
क्यों की
आप वर्ग की बातें करते थे
और अब अपवर्ग की
त्रिभूज
रसिक की पत्नी को प्रेम के त्रिकोण का
पता चला तो इस त्रिभुूज को भलि-भलि-भांति बांच के
अपने अनुकूल कर लिया,
भुजाएं खीच खांच के
सलूक
पुलिस वाले ने उन्हें रिश्वत लेते
रंगे हाथ पकड़ लिया
फिर बड़े अन्दाज से, उससे सवाल किया
बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए
कर्मचारी बोला डरता डरता
वही जो एक रिश्वतखोर दूसरे रिश्वतखोर से करता।
टालना
हथेेली पर सरसों
लहरे कल कल करती रही
और तुम हमेशा परसों परसों
बुद्धिजीवी
एक हास्य कवि की ब्रेन हैम्ब्रज से मृत्यु हुई
तो पत्नी ने रोते रोते कह दिया
हाय वे तो कहते रहे मैं बुद्धिजीवी हूं
मैंने ही विश्वास न किया
इनकी कविताओं से उपकार बड़ा होता था
इनकी कविताओं के डर से
बड़े से बड़ा कर्ज़ वापस मांगने वाला भी
मांग खड़ा होता था
गलती
कर्मचारी को खाली हाथ आते देखकर
वह रहा भन्नाता
बोला ‘यदि मुझे ज्ञात होता मैं किसी गधे को भेज रहा हूं
तो मंै खुद न चला जाता?’
पक्षी
यहां वहां दाना न डालें क्योंकि
पक्षी विमान से आकर टकराते हैं
विज्ञापन पढ़कर विपक्षी दल के नेता ने कहा
हमें भी कोई अभियान चलाना चाहिए
पक्षी विमान से टकराते हैं तो हमें भी कहीं तो टकराना चाहिये।
चोटी
एक युग था, जब चोटी के लोगों को चोटी से उखाड़कर
धराशायी कर दो तो वे चाणक्य हो जाते थे
सो नन्दों का नाश कर किसी चन्द्रगुप्त को
साम्राज्य दिलाने का बीड़ा उठाते थे
हर शोक ! न चोटी रही अब ! न चोटी के लोग
झील
सम्मुख बैठी छात्रा की झील सी आंखों में डूबें
प्रध्यापक लगे कहने – ‘(आंखों की झील)
देश विदेश की झीलें देखी हैं मैंने
न इनके मानदण्ड न कोई कसौटी
कहीं झींले कजरारी कहीं छोटी कहीं मोटी
विज्ञापनी
झूठ इतना सफेद वाह।
कौन सा साबुन प्रयोग किया ?
चरम
मैंने सदा ऊंचाइयों की बात सोची – पर क्या कहू
ज़िन्दगी पहाड़ हुई ओर मैं —
इसी पहाड़ की चोटी पर हूँ