कविता मल्होत्रा
बाल दिवस और दीपोत्सव, एक ही दिन आने वाले, आत्मा को आनँदित करते दोनों उत्सव, भारत के प्रत्येक नागरिक को, दोहरी भूमिका निभाने के लिए, सत्यम शिवम् सुँदरम की भावना के प्रति फिर एक बार आगाह कर रहे हैं।
हमारे देश के मौजूदा हालातों, और बाज़ारू चकाचौंध के प्रति आकर्षित होता, मासूम बच्चों के जीवन का बहाव, उन्हें अपने सँग बहा कर न ले जाए। हम सभी का ये कर्तव्य है कि इस स्थिति को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण देकर, भावी पीढ़ी को वास्तविक पूजन का सार्थक संदेश दिया जाए।
विदेशी बाज़ारों और बारूदी पटाखों के प्रति बच्चों का
आकर्षण किसी से छिपा नहीं है।
लेकिन अपने देश के नागरिकों के तमाम रोज़गार छीनकर विदेशी ताक़तों की ग़ुलामी के ज़िम्मेदार क्या हम लोग ही नहीं हैं?
एक देश से दूसरे देश की, ज़रूरत के सामानों की अदला-बदली आज केवल व्यापारिक अनुसँधान बनकर रह गई है।न तो किसी भी देश के नागरिकों की संवेदनाओं का कोई मोल बचा है, न ही कोई नक़्शा।
आज के संवेदनारहित समाज को एक संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसे अपने देश की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए और एक सँस्कार पूर्ण नस्ल उगाने के लिए, अपनी संस्कृति की बुनियाद से जुड़ना होगा।
अगर हम खुद ही खादी छोड़कर रेश्मी बर्बादी के लिहाफ़ ओढ़ने की अभिलाषा रखेंगे और भावी पीढ़ी को भ्रामक मानसिकता की धरोहर सौंप कर जाएँगे, तो हमारे देश का मासूम बचपन विदेशी बाज़ारों की ग़ुलामी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं सीख पाएगा।
इसलिए एक दूसरे की मदद के लिए बढ़ने वाले हाथों से, सामाजिक उत्थान की दूर दृष्टि का बीज, हर एक दिल में बीज कर, अपने देश की भावी पीढ़ी से, वास्तविक आनँद का परिचय करवाना, प्रत्येक नागरिक का दायित्व है।
जीवन धारा के विरूद्ध संघर्ष करती हमारी भावी पीढ़ी को, आज हमारी संस्कृति की उस बुनियाद से जोड़ना होगा, जो प्रकृति के माध्यम से धारा के संग बहने का संदेश देती है।
क्यूँ न अब के बरस बालदिवस पर बच्चों को दृष्टिकोण का उपहार दिया जाए, जिससे हमारे देश की भावी पीढ़ी इस बार, हर दिल में खुशहाली के दीप जलाकर वास्तविक पूजन का आनँद ले सके।
हर इँसान के जन्म का श्रेय जननी को ही दिया जाता है।जन्म देने वाली माँ का, अपनी संतान के प्रति एक विशेष दायित्व होता है। लेकिन समूचे समाज के उत्थान में समूची
महिला जाति का बहुत बड़ा योगदान होता है।
यदि एक महिला ही दूसरी महिला से ईर्ष्या-द्वेष रखकर केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए, अपने परिवार और समाज को केवल प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बनाएगी तो किस दूषित मानसिकता के दीप जलेंगे और किस कालिमा को फैलाएँगे, जिसका सीधा प्रभाव, हमारी भावी पीढ़ी पर पड़ेगा, ये गंभीर चिंतन का विषय है।
इसलिए अब के बरस करवा चौथ को महज़ बाहरी सौंदर्य प्रतियोगिता की तरह न मनाकर यदि अँतरदृष्टि का दीप जलाकर, समूची सृष्टि के मातृत्व को सम्मानित कर सकें तो उत्सव की सार्थकता भी बढ़ेगी और हमारी संस्कृति भी समृद्ध होगी।
समूचे भारतवासियों को इस पखवाड़े के सभी त्योहारों की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
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अब के बरस दीपोत्सव कुछ यूँ मनाएँ
हर दिल में ख़ुशहाली के दीप जलाएँ
दिल में निःस्वार्थ प्रेम के फूल खिलाएँ
बालदिवस को ऐसी सार्थकता दे पाएँ
हर जननी का सम्मान करना सीख जाएँ
प्रेम से रोशन नभ का चाँद जहन में उगाएँ
माँग का सिन्दूर,माँ की ममता से सजाएँ
जीवनसाथी-जीवनदायिनी संग अपनाएँ
हर दिल में खुशहाली की मिठास उगाएँ
समाज के प्रति दायित्व इस तरह निभाएँ