हां मन उदास होता है
यह देखकर
कि आपको बाहरी रूप में देखकर
आपके अंदर के इंसान को
बाहर आने के पहले ही
मार दिया जाता है।
जिनकी सोच जिनकी धारणा बन जाती है
वह स्वयं नहीं जानते
ना ही कोशिश करते हैं समझने की
उनको वही सही लगता है
जो दिखाई देता है।
अनेकों बार कोई दूसरा व्यक्ति
किसी तीसरे को गलत बताता है
स्वयं को सत्य करने के लिये,
उनको रोकता है कि
वह समझ ना सकें
देख ना सकें सच्चाई को
उनको बार बार रोका जाता है
और आंखें होते हुए भी
जब वह अंधे बन जाते हैं
देखते हैं वही जो उनको दिखाया जाता है
यकीन मानिए
वह कठपुतली कहलाते हैं
भले ही वह स्वयं को ज्ञानी बताते हैं।
वह अपंग हैं क्योंकि
वह जो देखते हैं उन्हें सत्य नजर आता है
और सामने वाले में खोट दिखाई देता है
उन्हें बस स्वयं का ध्यान आता है
दूसरों को समझाना भाता है।
तो आप जरा रुकिए
थोड़ी दूरी बनाइये,
उन्हें ना समझाकर स्वयं को समझाइये
मन उदास भले हो लेकिन
मुख पर मुस्कान होनी चाहिए
ऐसे लोगों को बताइए कि
आपको फर्क नहीं पड़ता
कैसा भी हो गुलाब
कांटों से नहीं लड़ता। — जयति जैन “नूतन” —