चंचल…
रोमांच से भरपूर
इठलाती
हिलौरे मारतीं,
अनवरत…
नदी और नारी
जब भी बड़ीं… रोकीं गईं ।
वेग किया गया
उनका अवरोहित,,,
बाँध के बंधन
चट्टानें अटका कर
बीच अधर में,,,
रफ्तार उनकी
मिटा दी गई ।
बंधनों में बंध कर,
कुछ रुकीं,
कुछ झुकीं
और बन गईं बंदी
भूल अपना,,,
असीम वेग,
खुद का अस्तित्व ।
और कुछ संघर्षरत…
भंवर से उभरीं,
ज्वालामुखी सी उफरीं ।
समेटे खुद में,
आक्रोश और परिवर्तन की धारा
निकल पड़ीं
छूने नये मुकाम ।
अंजु गुप्ता हिसार (हरियाणा)