डॉक्टर सुधीर सिंह
बदनसीब किसान की व्यथा की कहानी सुनें,
‘कोरोना’से ज्यादा ही जिसमें पीड़ा व भय है.
लॉकडाउन में रहने से कोरोना नहीं सटता है,
तैयार फसल की बर्बादी बिना छुए देता दर्द है.
बेमौसमआँधी-तूफान,बारिश वओलावृष्टि ने,
किसान के भविष्य को खाली कर चल दिया.
खेत के मेढ़ पर पड़े हुए मजबूर किसान को,
जार-बेजार रोने के लिए अकेला छोड़ गया.
भारतवर्ष में करोड़ों ऐसे बदनसीब किसान हैं,
जिन्हें कोरोना कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता है.
किंतु भविष्य की दयनीय स्थिति का डर उन्हें,
और आँसू बहाने के लिए मजबूर कर देता है.
अभागे किसान की दयनीय दशा को देखकर,
संवेदनशील व्यक्ति दर्द महसूस कर सकता है.
किंतु वातानुकूलित कमरे में रहनेवाला इंसान,
कृषक की व्यथा को समझ ही नहीं सकता है