“बदलता समय”
लघु कहानी— संदीप तोमर
अर्धवार्षिक परीक्षाएं अभी-अभी खत्म हुई थी। सभी अध्यापकों ने अपने-अपने विषय की कापियों की जांच करके बच्चों को मार्क्स दिखाने शुरू कर दिए थे।
जैसे ही मिस्टर मेहता ने विज्ञान की कॉपी जाँची, वे एक हाथ मे बंडल उठाये दूसरे हाथ से अपनी छड़ी टिकाते हुए दसवीं कक्षा में पहुंचें।
बचपन में पोलियो होने के चलते मिस्टर मेहता छड़ी के सहारे चलते हैं। कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने विज्ञान में एमएससी किया था। फिर बी एड करके अध्यापक नियुक्त हुए थे। पोलियो होने के बावजूद वो हमेशा खड़े होकर पढ़ाते। उनके जज्बे को देखते हुए प्रिंसिपल तो क्या उनके विभाग के अधिकारी भी उनकी सराहना करते हैं। मेहता जी जब नौंवी , दसवीं कक्षा को पढ़ाते हैं तो क्लास रूम को ही लैब बना देते हैं। प्रायोगिक ज्ञान देने में तो मानो उन्हें महारत हासिल है।
कक्षा में पहुँच उन्होंने रोल न. के साथ कापियां बच्चों को देते हुए कहा-“बच्चों किसी के मार्क्स का टोटल गलत हो या कोई प्रश्न चेक होने से छूट गया हो तो मुझे बता दे, उसके मार्क्स करेक्ट करके मैं बंडल एग्जाम सुप्रिडेंटेंट को जमा करा दूंगा।”
मेहता जी के इतना कहते ही बच्चों ने कॉपी को ध्यान से देखना शुरू कर दिया।
मेहता जी कुर्सी पर बैठ गए। अभी मुश्किल से दस मिनट ही हुए थे कुछ छात्रों ने कॉपी जमा करानी शुरू कर दी थी। तभी एक छात्रा ने आकर कहा-“सर मेरे सिर्फ सोलह मार्क्स हैं, मैं तो फेल हो जाऊँगी, सर इतने कम मार्क्स कैसे आ सकते हैं?”
” बेटा, क्या टोटल गलत है या कोई प्रश्न चेक हुए बिना रह गया?”- मेहता जी ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा।
” नही सर, टोटल तो सही है। क्वेश्चन भी नही छूटा लेकिन……..।”
“बेटा जितना लिखा उस पर ही तो मार्क्स मिलेंगे न ।”- कहते हुए उन्होंने बंडल समेटना शुरू किया।बंडल लेकर वो बाहर निकल ही रहे थे कि उनके कानों में फराह के शब्द पड़े-“इस लंगड़े ने मुझे जानबूझकर फेल किया है। इसे तो सबक सिखाना पड़ेगा।”
आज परीक्षा की कॉपियों का बोझ उठाते हुए उन्हें जितना कष्ट हो रहा था उससे ज्यादा कष्ट उन्हें फराह के शब्दों से हो रहा था। उन्होंने बंडल बगल में दबा चश्मे के नीचे से नम आंखों को पोंछा और स्टाफ रूम की ओर बढ़ गए।
2
“लायक बेटा”
अश्वनी साहब अब शकून की सांस लेते हुए खुद को भाग्यशाली कहते थे। उनका एकमात्र पुत्र एम.सी.ए. करने के बाद लगभग अस्सी लाख रुपये मासिक के वेतन पर कनाडा जो चला गया था। अश्वनी साहब जब सेवा-निवृत्त हुए तो वह और पत्नी दोनों थोडा बीमार रहने लगे। उन्होंने बेटे से कितनी ही बार वापिस लौट आने का आग्रह किया; परन्तु कनाडा की लाइफ और कम्पनी की विवशता बता वह हर बार इन्कार कर देता। अश्वनी साहब की पत्नी भी चल बसी थी, उन्होंने बेटे को सूचना दी, लेकिन फिर वही विवशता जता पुत्र माँ की अंत्येष्ठी पर भी नहीं आया था, उल्टे उसने पिता को अंत्येष्ठी के बाद कनाडा आने की सलाह दी। अश्वनी साहब अपनी पत्नी के अंतिम कार्यों से निवृत होकर कनाडा चले भी गए; परन्तु उनका मन वहाँ पर बिल्कुल नहीं लगा।
भारतीय परम्परा और संस्कार उन्हें बेचैन करते थे, उन्होंने बेटे को बड़े अनुशासन के साथ पाला था ।वही अनुशासन उनके दिमाग पर हावी रहता था। आज सुबह बेटा-बहु दोनों जॉब पर चले गए तो पांच साल का पोता उनसे घोडा बनकर पीठ पर घुमाने की जिद करने लगा, उम्र अधिक होने के चलते घुटनों में दर्द था लेकिन पोते की खातिर वो कुछ देर ये उपक्रम करते रहे। जब उनसे होते नहीं बना तो उन्होंने इन्कार कर दिया। पोते ने गुस्सा करना शुरू किया; अश्वनी साहब को ये उदंडता लगी, भारतीय अनुशासन उबाल मारने लगा तो उन्होंने पोते को डांटा, नहीं माना तो एक चांटा उसके गाल पर रसीद कर दिया और जाकर एक कमरे में बैठ गए।
बमुश्किल दस मिनट हुए थे, पोते की सिसकारियाँ अभी सुनाई पड ही रही थी। अचानक डोर बैल बजी, उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने पुलिस थी। उन्हें गाड़ी में बिठा लिया गया, रास्ते में ही बताया कि आपने बच्चे को मारा इसलिए आपको अरेस्ट किया गया है।
उन्होंने कहा-“मेरा पोता है मैं मारूं या प्यार करूँ, इससे आपको क्या फर्क पड़ता है?”
“फर्क पड़ता है साहब, ये आपका इण्डिया नहीं कनाडा है, यहाँ बच्चे को मारना ह्युमन राईट का उलंघन है।“
उन्हें कहते कुछ न बना, शाम को बेटा पुलिस स्टेशन आकर उन्हें घर ले गया। घर आकर बेटे ने उनके हाथ में इंडिया का टिकट थमा दिया और कहा-“बाबू जी. आप यहाँ कनाडा में रहने के लायक नहीं हैं।“
अश्वनी साहब हाथ में टिकट पकडे हुए लायक बेटे की आँखों में कुछ टटोलने लगे थे।
3
“असली मुजरिम कौन?”
एफ आई आर से लेकर विशिष्ट अदालत तक की कारवाही ने उसे तोड़कर रख दिया था, अदालत के सवाल-जवाब, बार बार बयान लेना,इस पूरी प्रक्रिया ने उसे मानस से बुत में तब्दील कर दिया था। विशिष्ट अदालत में आज केस की अंतिम सुनवाई है।
विशिष्ट अदालत के जज ने उससे कहा–“आज केस की अंतिम सुनवाई है, उसके बाद फैसला सुरक्षित रख दिया जायेगा। तुम्हें अभी भी इस केस में कुछ और कहना हो तो कह सकती हो।“
रेप पीडिता ने हाथ जोड़कर जज साहब को कहा– “इस दरिन्दे बलात्कारी को आप जो भी सजा दें लेकिन मेरे माँ-बाप और परिवार वाले इससे भी बड़े दोषी हैं।”
“व्हाट डू यू मीन?”
कोर्ट रूम में मानों सन्नाटा छा गया, सब उसकी बात सुन स्तब्ध थे।
“जो कुछ तुम कह रही हो होश-ओ-हवास में कह रही हो? जानती हो इस स्टेटमेंट से केस की फ़िजा ही बदल जाएगी?” जज साहब ने कहा।
“जी हाँ जज साहब। मैं ठीक कह रही हूँ। मैं जानती हूँ, लेकिन मेरा हर एक शब्द सच है। मेरे परिवार वाले भी मेरे गुनाहगार हैं।” लड़की ने शांत स्वर में जवाब दिया।
जज साहब आश्चर्य में पड़ गए, जहाँ वे फैसला सुरक्षित रखने का विचार कर रहे थे वहीँ रेप पीडिता का एक अनोखा स्टेटमेंट आया था।
लड़की की माँ ने कहा -“रे छोरी क्या अनाप-सनाप बोले जा रही हो?होश सब खो दिया लगता है ?”
“मैं जो भी बोल रही हूँ बहुत सोच-समझ कर बोल रही हूँ। रेप मेरे साथ हुआ, हृदय मेरा आहात हुआ, रोज एक मौत मैं मरती रही, लेकिन ये सब आज तक मेरा जीना दुस्वार करते रहे, उसने तो मेरा शरीरिक बलात्कार किया लेकिन ये लोग तो रोज मेरा मानसिक बलात्कार करते रहे, मुझे मानसिक वेदना देते रहे, कभी समाज का डर दिखा कर, कभी समझौते की बात कहकर, तो कभी किसी ऐरे-गैरे से शादी करने का दबाव डालकर। उससे तो कोर्ट में लड़ रही हूँ, मेरे अपनों से कैसे लडूं जज साहब?” उसकी सिसकी रुदन में बदलने लगी।
लड़की के माँ-बाप आवाक खड़े उसका चेहरे देखते रहे। जज साहब का मन वेदना से भर गया।
4
“तू नहीं समझेगा”
आज सुबह से उन दोनों के बीच कोहराम मचा था। बात एक बार बढ़ी तो बढती चली गयी। उसने अपना आप खोया और पायल को दो-चार लात-घूंसे मार सीधे केशव के पास पहुंचा। केशव उसका बचपन का यार था, तनाव के समय वह उसके पास आकर अक्सर दारू पिया करता था। केशक ने उसके हाव-भाव को भांपते हुए पूछा- क्या हुआ, लगता है आज फिर पायल से झगडा हुआ?”
“हाँ यार! ये कोई नयी बात नहीं है, तू तो जानता ही है, अब उसके साथ घुटन महसूस होती है।“
“लेकिन तू भी तो अपने गुस्से को कण्ट्रोल किया कर, जब देखो सातवे आसमान में सात घोड़ों पर सवार रहता है।“
“तू उसे जानता है न, साली कुतिया! पार्टियों में खुलेआम शराब पीती है, गैर मर्दों के जिश्म से चिपककर थिरकती है। हुक्का बार में जाकर नशा तक करती है, तू तो देखता ही है किस तरह के कटे-फटे और छोटे कपडे पहन के घूमती है।“
“यार लेकिन इसमें नया क्या है, ये सब तो वो तेरे साथ रहने से पहले भी करती थी?”
“केशव तब की बात और थी, तब हम लिव इन रिलेशन में नहीं थे।”
“नहीं यार, देख तुझे ही मॉड, स्टाइलिश और सेक्स बम टाइप पार्टनर की तलाश थी।”
“अबे केशव, तू नहीं समझेगा, गर्लफ्रेंड तक ठीक है, लेकिन…. ।“
“लेकिन लिव इन रिलेशन वाली पर वाइफ का हक़ भी नहीं जताया जाता।“-केशव ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही कहा।
“तू रहेगा गाँव का गंवार ही, साला….चु….. । वो साली मेरे साथ होकर भी ये सब रंडापा करेगी…? खैर तू नहीं समझेगा, चल बोतल निकाल, दो-दो घूंट मारते हैं।”
दोनों दोस्त पेग-सेग में मशगूल हो गए थे।
5
“मैं तुझे राखी बांधूंगा”
आज वह जल्दी उठा। नहा-धोकर उसने नए कपडे पहने और घर में चहलकदमी करने लगा। उसका व्यवहार देख सब हैरान थे। पुष्पा को उसका व्यवहार हैरान तो नहीं कर रहा था लेकिन वह कुछ बेचैन अवश्य हो गयी थी।
“क्यों रे मेरे छोटू भाई, ये आज तुझे सुबह सुबह क्या सूझी कि तू ये नाहा-धोकर बन-ठन कर यूँ चहलकदमी मचाये है?”
“अरे जिज्जी, क्या तुझे नहीं पता आज रक्षा- बंधन है?”
“मेरे छोटू भाई, ये सब तीज-त्यौहार भरे पेट वालों को ही अच्छे लगते हैं, हम गरीब लोग कहाँ तीज-त्यौहार मानना जानते हैं?”
“जिज्जी, आज हम राखी का त्यौहार मनाएंगे, मैंने कुछ पैसे बचाकर राखी भी खरीदी है और कुछ मिठाई भी।“-उसकी जुबान में गर्व झलक रहा था। वह झट से एक प्लेट में राखी, हल्दी का टीका और मिठाई ले अपनी जिज्जी के सामने उपस्थित था।
“ला छोटू, फिर मैं तुझे राखी बांध दूँ।“- कहकर पुष्पा ने उसके हाथ से प्लेट लेनी चाही।
“नहीं जिज्जी, राखी तू मुझे नहीं बांधेगी, मैं तुझे बांधूंगा।“-छोटू ने कहा।
“अरे, अरे ये क्या बोलता है अनाप-सनाप, ऐसे थोड़े ही न होता है, ठाकुर हवेली में सब बहनें ही भाई को राखी बांधती है।–पुष्पा ने कहा।
“जिज्जी,राखी का मतलब तू जानती है? जो रक्षा करे उसके हाथ पर ही राखी बांधते हैं, फिर तू ही मेरी रक्षा करती है न, तो राखी तेरे हाथ पर ही बांधेगी न।“-चोतुने अपना तर्क दिया।
छोटू की बात सुनकर पुष्पा विचारों में खोती चली गयी।
अभी कुछ ही दिन पहले जब वह दराती लेकर छोटू के साथ घास काटने जा रही थी तो गॉव के ही एक गुंडे ने उस पर घात लगाकर हमला कर दिया था, छोटू ने उसे बचाने के लिए बहुत कोशिश की थी, लेकिन गुंडे ने छोटू की घंटी पकड़ ली थी, छोटू अभी बारह साल का भी नहीं था, गुंडे की पकड़ से वह खुद को बचा नहीं पाया था। पुष्पा ने दरांती से वार किया तो गुंडा बिलबिला पड़ा था और जान बचाकर भागा था।
पुष्पा ने छोटू की तरफ अपनी कलाई बढ़ा दी, छोटू कभी प्लेट की तरफ देखता, कभी पुष्पा की आँख से बहते आंसुओ को।