बरसती फुहारों में झूमे है मन,
चलो उड़ जायें कहीं दूर चलो ।
लगा पंख मांग किसी पंक्षी के,
चलो आज गगन के पार चलो।
सारी उलझनें सुला कर कोने में,
खुशियों के संग उड़ जायें चलो।
कहां से आया है झूमता बादल ,
चलो इन बादलों के साथ चलो।
गीत सीखेंगे कोयल से हो मगन,
बागों की सुरभित शमां में चलो।
भीग जायें इन भीगते मौसम में,
चलो ना मन की धुलें धूल चलो।
सारी कटुता भुला दें आपस के,
प्रेम आपस में करें आज चलो ।
जाति और धर्म को यूं चलने दो,
मानवता का चुनें एक धर्म चलो।
बरसती फुहारें शमां रंगीन हुआ,
मन कहता है गगन के पार चलो।
डॉ सरला सिंह
दिल्ली