विपदा आई जग पर भारी,
विष हर ओर है घुल रहा।
तांडव फिर से मचा रही,
जग में सुरसा मुख खुल रहा।
कठिन समय यह जग पर भारी,
जब लॉक डाउन सफल बनेगा ।
संकल्प के अस्त्र से ही बंधु ,
देश – दुनिया करोना मुक्त बनेगा ।
लांघो न तुम लक्ष्मणरेखा,
घर अपने और देहरी की।
चौकीदार जो कह रहा,
मानो बात उस प्रहरी की।
विश्व गुरु हम थे और हैं,
सदा दुनिया को राह दिखाई है।
घास की रोटी खाकर हमने,
अपने देश की लाज बचाई है।
आर्यों की संतान हैं हम,
हम कभी ना घुटने टेकेंगे।
भले शत्रु है दैत्य जैसा है,
संकल्प से मात हम दे देंगे।
आज आओ चिंतन कर लें हम,
अपने आचार व्यवहार का।
भूलकर हैं जिसमें लिप्त,
पर संस्कृति व्यपार का।
अपनी स्वच्छ संस्कृति को,
चलो हम फिर से अपनाएँ।
विपदा पास न आ पाए,
हम एकजुट हो उसे भगाएँ।
कुछ आओ खोज लें अपना खोया,
जो कब से अपने घर में था।
अपने मन का वह कोना भी,
जो निश्छल सा कभी उर में था।
माता- पिता के साथ बैठकर,
उनकी खुशियों में चाँद लगाओ।
घुलो अपनों के संग पल – पल ,
संबंधों में सुंदर फांद लगाओ।
बहुत कुछ करने को घर में है,
बाहर काल है खड़ा हुआ।
मौत बुलाती बाहर और ,
उत्सव है घर में पड़ा हुआ।
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार
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