सिर पर बोझ जब भीअसह्य हो जाता है,
आदमी तुरंत उसे उतार कर रख देता है.
इस भरी दुनिया में सिर्फ माता-पिता ही,
संतान की जिम्मेवारी जीवन भर ढोता है.
फूल समान लगता है सबों का बोझ उसे,
माँ-बाप मुस्कुराकर उसे उठाता रहता है.
खुद के बुढ़ापा का बोझ भूल जाता वह,
गदहे की तरह जिंदगी वह गुजार लेता है.
बोझ उठाने की बारी जब उनकीआती है,
माँ-बाप बोझिल तब लगने लग जाता है.
यही दस्तूर है आज आधुनिक समाज का, बूढ़ा-बुजुर्ग जब वृद्धाश्रम में बस जाता है