मैं फिर लौट आऊंगी
धूप के उजास सी
कि करूंगी ढेरों मन भर बातें
उस जाती हुई ओस से भी
जिसके हिस्से में आती हैं सिर्फ रातें ही !!
मैं फिर लौट आऊंगी
पहली बारिश सी
कि सिमट जाऊंगी मिट्टी में
और होती रहूंगी तृप्त
उसकी सोंधी-सोंधी सी महक में !!
मैं फिर लौट आऊंगी
टूटे हुए तारे सी
कि सुन लूंगी हर एक दुआ
हर उस प्रेम-पथिक की
जिए जा रहा है जो “इंतज़ार” में ही !!
मैं फिर लौट आऊंगी
एक लाडली कविता सी
“खुशनुमा मौसम” की ही तरह
बस, बची रह सकूं इस बार
किसी तरह इस प्रलयकारी तूफान से !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश , मेरठ