ये चाक जिगर के सीना भी जरूरी है
कुछ रोज़ खुद को जीना भी जरूरी है
ज़िंदगी रोज़ ही नए कायदे सिखाती है
बेकायदे होके कभी पीना भी जरूरी है
सब यूँ ही दरिया पार कर जाएँगे क्या
सबक को डूबता सफीना भी जरूरी है
जिस्म सिमट के पूरा ठंडा न पड़ जाए
साल में जून का महीना भी जरूरी है
सिर्फ जान पहचान ही काफी नहीं होती
नाम कमाना है, तो पसीना भी जरूरी है
सलिल सरोज