रंग जितने हो बेशक लगाया करो।
चाहे जितना मुझे तुम सताया करो।।
रोज खेलो भले मुझसे होली मगर।
सामने सबके रंग न लगाया करो।।
इस होली में घर तेरे आऊँ प्रिये।
गोरे गालों पे, रंग मैं लगाऊँ प्रिये।।
चाहे लहंगा और चुनरी पहिनना पड़े।
चाहे तेरी सखी मुझको बनना पड़े।।
सब करूँगा सनम मैं तुम्हारे लिए।
इस तरह न मुझे आजमाया करो।।
भांग पीकर ये रंग मुझमें न भरो।
इतना बेचैन मुझको सनम न करो।।
क्या कहेगा जमाना मुझे और तुझे।
इस जमाने का डर क्या नहीं है।।
चाहे कर लो भले मुझपे लाखों सितम।
हाथ देकर न मुझको बुलाया करो।।
जब से रंग में रंगी हूँ, तुम्हारे पिया।
जब से बस में नही है ये मेरा जिया।।
प्रेम की आग फागुन लगाने लगा।
प्रीत के रंग में यूँ भिगाने लगा।।
चाहे जितना लगाओ मोहब्बत का रंग।
पर जमाने से नजरें बचाया करो।।
जब हुआ तुझसे था मेरा पहला मिलन।
लब तो खामोश थे बोलते थे नयन।।
इश्क का रंग जबसे चढ़ाया मुझे।
मैं बना लूँगा अपनी दुल्हन अब तुझे।।
यूँ जमाने का डर न दिखा तू मुझे।
होली संग में मेरे तुम मनाया करो।
रंग जितने…..
वंदना सोनी “विनम्र”
फ़कीरचन्द अखाड़ा जबलपुर