1
क्या खोया ,क्या पाया
अतीत के पन्नों को जब पलटा मैंने….
तब देखा ,क्या खोया,क्या पाया….
धोती-कुर्ता को छोड़,
जींस-टाप क्या पहन लिया….
चरण स्पर्श को छोड़,
हाय-बाय को अपना लिया….
दादी-नानी के रिश्तों को भुला दिया,
व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर को अपना लिया…
अतीत के…..
अपने ही घर को मकान बना दिया,
नयी दुनिया को अपना मुकाम बना लिया,
समय को सपनों की दुनिया में गँवा दिया..
मोबाइल को अपना जहाँ बना दिया…
अतीत के ….
रिश्तों में दूरियां बना लीं,
बेगानों से नजदीकियाँ बढ़ा लीं,
अपने तो लगने लगे पराए,
परायों को अपना खुदा बना लिया…
अतीत के….
2
व्याकुल माँ
हृदय आज विदीर्ण हुआ,
फिर वाही मिथ्या आरोप सुना
क्यों करती हो टोका-टाकी,
सारी पाबन्दी क्यों हैं मुझ पर
भाई भी तो बाहर जाता है
क्यों उसे न टोकती हरपल,
कैसे समझाऊं उसे, कैसे बताऊँ उसे,
मेरे लिए तो तुम मेरी पारी हो ,
किन्तु ज़माने के लिए तुम मात्र स्त्री हो
हृदय आज ….
कैसे तुम मुझ पर आरोप लगा सकती हो?
जब एक ही रक्त से सिंचित हो,
हाँ, मै रोकती हूँ, मै टोकती हूँ,
क्यों मै चिंतित हूँ, मै भयभीत हूँ,
तुम्हारी सुरक्षा और भविष्य को लेकर
हृदय…….
है करबद्ध बस यही प्रार्थना ,
कभी गलत न मुझे आंकना
इतना ही कहूँगी अंततः,
मुझे समझने के लिए , पहले माँ बनना
हृदय आज …….
(रश्मि श्रीधर की कलम से )
परिचय
रशिम श्रीधर,एम. ए.(हिन्दी साहित्य), एम. एड.,दिल्ली प्रशासन में हिन्दी टी.जी.टी. के पद पर कार्यरत,रुचि-हिन्दी लेखन-कविता व लघुकथा।